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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १००० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झाड उपरनां निवासस्थान, गुफाओ, झाडना नीचे व्यंतरनां स्थळ, व्यंतर माटे करेली देरडीयो, मठो, भवनगृह विगेरे जे कंइ रम| णीय स्थान होय, ते हाथ उंचा करी करीने अंगुलीथी उद्देशी उद्देशीने उंचा नीचा थइने जोवां नहि, तेम बीजाने बताववां पण नहि, | तेमां दोषो आ छे के, ते स्थानमां आग लागे के चोरी थाय तो ते साधु उपर शंका आत्रे, तथा गृहस्थो एम जाणे के, आ उपरथी | त्यागी छतां अंदरथी इंद्रियोथी परवश छे, तथा त्यां बेठेलो पक्षीनो समुदाय त्रास पामे, माटे साधु तेनुं न करतां शांतिथी विहार करे, तथा मार्गे विहारमां नीचली वावतो होय, नदीना नीचाण भागमां बसेला (कच्छ) देशो अथवा मूळा वालोळनी वाडीओ, दवियाणि (बीड) जेमां राजा तरफथी घास माटे जमीन रोकेली होय छे ते, तथा नीचाणना खाडा (खीण) वलयो (नदीए वींटेला भूमीभागो ) गहन उजाड प्रदेशे, अथवा पाणी विनानुं रण अथवा उजाड पहाळी किल्ला वन मोटां वन पर्वत पर्वतसमूह होय, तथा कुवा तळाव कुंड नदीओ बावडीओ कमळवाळी तथा लांबी वावडीओ गुंजालिका बांकी वावडीओ सरोवर सरोवरनी श्रेणि होय, जोडे जोडे तळाव होय, आ वधुं देखवा योग्य होय, छतां पण हाथ उंचा करने के आंगळीथी इशारत करीने बताव नहि, तथा देख नहि, केवळी प्रभु तेमां नीचला दोषो बतावे छे, कारण के तेमां रहेला मृगो बीजां पशु पक्षी साप सौंह जलचर थलचर | खेचर विगेरे जीवो होय, ते त्रास पामे, भडके, अथवा शरण लेवा आम तेम दोडे, तेथी तेनी नजीकमां रहेनार लाकोने साधु | उपर शक आवे माटे साधुए मार्गमां चालतां तेम न कर, माटे शास्त्र जाणनारा एवा आचार्य उपाध्याय विगेरे गीतार्थ साधुओ पोते विचरे. हवे आचार्य विगेरे साथे चालतां साधुनी विधि कहे छे. सेभिक्खू वा २ आयरिउवज्झा० गामा० नो आयरियउवज्झायस्स हत्थेण वा इत्थं जाव अणासायमाणे तओ संजयामेव For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥१०००
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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