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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S+CSC ॥२८॥ विगेरे दोषरहित गोचरी लेवानी छे, ते न मळे, तथा ते नगर विगेरेमा घणा श्रमण, ब्राह्मणो, कृपण, वणीमग विगेरे आवीने आचा० है भरायेला छे, अने बीजा आववाना छे, तेथी घगा मागण भरावासी आकीर्ण वृत्ति छे, एटले भिक्षा माटे अटन तथा स्वाध्याय । सूत्रम् ध्यान करवा बहा जतां आवतां ते घणा भिक्षुक माणसोना भरावाधी ते गाम विगेरे संकोचायेल छे, त्यां जैनसाधुने जर्बु आवg ॥९८१॥ | तथा धर्म चितवन विगेरे क्रिया उपद्रव रहित न थाय. जो आवी अगवडो होय, तो तेवा क्षेत्रमा चोमासुं न करे, पण जो उपर & बतावेली अगवडो न होय एटले भणवानी अने स्थंडिलनी जग्या होय, उचित उपकरण मळता होय, पिंड शुद्ध मळतो होय, अन्य भिक्षुको सामान्य प्रमागमा होय, जतां श्रावतां घणो समय न लागतो होय, तो त्यां चोमासु करवं. हवे वर्षाकाळ पुरो थये क्यारे । | विहार न करवो ने कहे छे. अह पुणेवं जाणिज्जा-चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता हेमंताण य पंचदसरायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गे बहुपाणा जाव ससंताणगा नो जत्थ बहवे जाव उगगमिस्संति, सेवं नवा नो गामणुगाम दुइजि जा ।। अह पुणेवं जाणिजा चत्तारि मासा. कप्पे परिवसिए, अंतरा से मग्गे अपंडा जाच ससंताणगा बहवे जत्थ समण उवागमिस्संति सेवं नचा तओ संजयामेव० दुइ जिज ॥ (मू० ११३) हवे आ प्रमाणे साधुओ जाणे, के चोमासा संबंधी चारमास पूरा थाय छे, अर्थात् कार्तिकी चोमासु पूरु थयुं छे, त्यां जो भी उत्सर्गथी दृष्टि न होय, तो एक मेज बीजे स्थळे जइने पारणु करवू पण जो दृष्टि चालु होय तो हेमंत रुतुना पांच-दस दीवस गये || ४यके विहार करवो, तेमां पण जो बीजे गाम जतां मार्गमा नानां जंतुना इंडो पड्यां होय, गारो होय, करोळीयाना जाळां बाझी 31 -CHHAARCH For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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