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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० ॥९७७॥ SSENSESS-CREASER-CA-% 94% केवली बूया आयाणमेयं-अपडिलेहियाए, उच्चारपासवणभूमीप, से मिक्खू वा० राओ वा वियाले वा उच्चारपासवर्ण परिहबेमाणे पयलिज्ज वा २, से तत्थ पयलमाणे वा २ हत्थं वा पायं वा जाव लूसेज व पाणाणि वा ४ ववरोविज्जा, सुत्रम् अह भिक्खू णं पुजं पुब्बामेव पन्नस्स उ० भूमि पडिले हिज्जा ।। (सू० १०६) ते साधु-साध्वीए एक जग्याए रहेतां के विहार करतां प्रथमथी स्थंडिल मात्रानी जग्या जोइ लेवी, जो दिवस छतां जोइन 8 ॥९७७॥ राखे तो केवळी प्रभु तेमा दोष बतावे छे, कारण के ते भिक्षु के साध्वी रात्र के विकाले तेवा स्थानमा स्थंडिल मात्र परठवतां पग। खसी जतां तेना हाथ पग भांगे, अथवा इंद्रियोने नुकशान थाय अथवा अन्य प्राणीना प्राण पण ले, पटला माटे साधु-साध्वीए हा प्रथमथी ठल्ला मात्रानी जग्या दिवस छतां जोइ लेवी. से भिक्खू वा २ अभिकसिज्जा सिज्जासंथारंगभूमि पडिले हित्तए नन्नत्य आयरिएण वा उ. जाव गणावर एण या बालेण वा चुट्टेण वा सेहेण वा गिलाणेण वा आएसेण वा अंतेण वा मज्शेण वा समेण वा विसमेण वा पवारण वा निवाणए वा, तो संजयामेव पांडलेहिय २ पमज्जिय २ तो संजयामेव बहुफासुर्य सिज्जासंथारगं संथरिज्जा॥(मू १०७) ते साधुए प्रथमथी आचार्य उपाध्याय विगेरेथी गणावच्छेदक सुधीना अथवा बाळ वृद्ध नवा शिष्य, मांदा अथवा परोणानी जग्या छोटी दइने छेडेनी जग्या अथवा मध्यमां अथवा सम के विषम (खबचडी) जग्या होय, पवन आवे न आवे, तो पण तेमा संतोष राखी पडिलेहणा प्रमार्जन करीने संथारो पाथरवो. हवे शयननी विधि कहे हे. से भिक्खू वा० बहु संथरिता अभिकंखिज्जा बहुफामुए सिज्जासंथारए दुहित्तए ।। से भिक्खू बहु० दुरूहमाणे पुवामेव HOCOCCANCE- % For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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