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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से भिक्खू वा० से जं० ससागारियं सागगियं सउदयं को पनस्स निक्खमणपवेसाए जावऽणुचिंताए तहप्पगारे उवस्सए नो ठा० भिक्षु एवं जाणे के आ उपाश्रयमां गृहस्थ रहे छे. अथवा अग्नि बळे छे, अथवा पाणी (सचित) रहे छे, त्यां आगळ साधुए काउसग्ग करवा के ध्यान करवा के भणवा रहेनुं नहि. (स्वां निवास न करवो ) सेभिक्खु वा० से जं० गाहावइकलस्स मज्झमज्झेणं गंतुं पंथए पडिबद्धं वा नो पनस्स जाव चिन्ताए तह उ० नो ठा० ॥ (० ९२ जे उपाश्रयम तय होय त्यां गृहस्थना घर मध्येनो मुख्य रस्तो होय त्यां बहु अपायनो संभव होवाथी तेवी जग्याए न रहेबुं सेभिक्खू वा० से जं०, इह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अन्त्रमन्नं अकोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स०, सेवं नचा तप्पगारे उ० नो ठा० ॥ ( मू० ९३ ) ते बुद्धिमान साधु एम जाणे, के आ जग्गामां गृहस्थ अथव नेना घरमां काइपण नोकर विगेरे परस्पर लडे छे. एक बीजाने उपद्रव करे छे, ते जाणीने ते घरमां साधुए निवास न करवो, कारण के त्यां रहेतां गणवामां के समाधिमां विघ्न थाय छे. से भिक्खू वा० से जं० पुण० इह खलु गाहावई वा कम्मकरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं तिल्लेण वा नव० घ० वसा वा अभंगेति वा मक्खेति वा नो पण्णस्स जाव तहप० उ० नो ठा० ( मू० ९४ ) ते साधु एम जाणे के आ घरमा गृहस्थ अथवा नोकरडी विगेरे कोइपण परस्पर एक बीजाना शरीरने तेस, माखण, घी के चरबीथी चोळे छे, अथवा कल्कं विगेरेथी उद्वर्त्तन करे के, त्यां प्रज्ञसाधुने निवास करवो न कल्पे. सेभिक्खू वा० से जं पुण० - इह खलु गाडावई वा जाव कम्मकरीओ अन्नमनस्स गायं सिणाणेण वा क० लु० चु० For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥९७१॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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