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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit + 4 + आवेथी केटलाक श्रावको छळ करे छे, अने कहे के ( पाभृतिकाती पेटे भाभृतिक वसति होय तेनो अर्थ आ छ के, दानने माटे आचा० कल्पेली राखेल छे.) वसति तेवी वसति पूर्व साधुओने बतावेली होय, के तमे ज्यारे आवो त्यारे अहिं उतरजो, ते उत्क्षिप्त पूर्वा || सूत्रम् वसति छे, तथा एम कहे के अमे पूर्वे आ मारे रहेवा माटे बनावी छे, ते निक्षिप्त प्रपूर्वा छे; तथा "परिभाइ यपुल्ब" ते अमे आ ॥९६८॥ | वसति पहेलाथा अभारा भतिजा विगेरे माटे कल्पेली छे, तथा बीजा गृहस्थोए पण आ रहेवानं मकान वापर्यु छ, तथा ते H गृहस्थ कहे छ के अमे एने प्रथमी पाडी नांखवा राखेल छे, जो तमारे आ उपयोगमा न आवे तो अमे एने पाडी नाखीY, आ प्रमाणे भक्तिथी कोई गृहस्थ छलना करे तो साधुए ठगवानुं नहि; पण दोपोने दूर करवा प्रयत्न करवो. -आ प्रमाणे छलनाना संभवमां पण यथावस्थित वसतिना गुण दोषी गृहस्थे पूछतां साधु कहे तो शुं सम्यकज प्रकट करशे? अथवा एवं प्रकट करतो साधु शुं सम्यक प्रकट कहेनारो थशे? आचार्य कहे हा! ( हंत! अव्यय शिष्यना आमंत्रणमा छे) ते सम्यकज कहेनारो थाय छे. हवे तेवा कार्यना वशथी चरक कार्पटिक विगेरे साथे उतरवू पडे तो तेनी विधि कहे छे. से भिक्खू वा० से जं पुण उवस्सयं नाणिज्जा खुडियाा खुड्डदुवारियाओ निययाभो संनिरुद्धाओ भवन्ति, तहप्पगा. उवस्सए राओ वा चियाले वा निक्खममाणे वा प० पुरा हत्येण वा पच्छ। पाएण वा तो संजयामेव निक्खमिज वा २, केवली बृया आयाणमेयं, जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए दंडए वा लट्टिया वा भिसिया वा नालिया वा चेल वा चिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वा चम्मछेयणए वा दुब्बद्ध दुनिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा २ पयलिज्ज वा २; से तत्य पयलमाणे वा० इत्थं वा० लूसिज्ज वा ४ जाव क For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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