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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२५॥ करीने तेनेज मारशे, विगेरे दोपो छे, अने जो साधु तेप्रमाणे चोरी करनारा चोरने न बतावे तो ते घरवाळांने आ साधु नदी आचा० | पण चोर छे एवी शंका थाय माटे आवा दोषो जागीने साधुए गृहस्थने रहेवाना घरमा न उतरवू. फरीथी वसतिना दोषो बतावे छे. से भिक्खू वा से जं. तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा सअंडे जाव ससंताणए तहप्पगारे उ० नो ठाणं वा० ॥ ३ ॥ से ॥९५८॥ भिक्खू वा० से जं० तणपुं पलाल० अप्पंडे जाव चेइज्जा ॥ (मूल ७६) ते साधु घासनो ढगलो होय, पराळनो पुंज होय, पण त्यां इंडां पडेलां होय, तेवा मकानमा साधु न रहे, पण उपर बतावेला घास के पराळमां इंदा न होय तेवा मकानमा उतरवु, ( अस शब्दनी अर्थ अभाववाची छे.) हवे वसतिना परित्यागना उद्देशानो अर्थाधिकार कहे हेसे आगंतारेसु आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अभिक्खण साहम्मिएहि उवयमाणेहिं नो उवइज्जा ॥ (मू०७७) लोकोने उतरवानां मुसाफरखाना के बगीचानी अंदरनां घरो के मठो अथवा ज्यां पोताना सरखी समाचारीवाळा साधुओ 5 वारंवार आवीने उतरता होय, तेवा स्थानमा मासकल्प विगेरे न करवो. ( के बोजाने उतरतां संकोच न थाय) हवे कालातिक्रांत वसतिना दोषो कहे छेसे आगंतारेसु वा ४ जे भयंतारो उडुबद्रियं वा वासावासिय वा कप्पं उबाइणित्ता तत्थव भुजो संवसंति, अयमाउसो! कालाइकंतकिरियावि भवति १ ।। (मू० ७८) ACCORRORSCHOOL For Private and Personal use only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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