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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९४७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ चेज्जा || से नं पुण उवसस्सयं जाणिज्जा अस्सि पडिआए एवं साहम्मियं समुहिस्स पाई ४ समरंभ इसमुद्दिस्स कीयं पामिचं अच्छिज्जं अणि अभिडं आह चेएइ, तहष्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा जाव अणासेविए वा नो ठाणं वा ३ चेइज्जा । एवं बहवे साहम्मिया एवं साहम्मिणि वहवे साहम्मिणीओ | से भिक्खू वा० से जं पुण उ० बहवे समणवणीमए पगणिय २ समुहिस्स तं चेत्र भाणियन्त्रं || से भिक्खू वा० से जं० बहवे समण० समुद्दिस्स पाणाई ४ जाब चेति, तहष्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए नो ठाणं वा ३ चेइज्जा ३, अह पुणे जाणिज्जा | पुरिसंतरकडे जाव सेविए पडिलेहित्ता २ तओ संजयामेव वेइज्जा ॥ से भिक्खु वा० से जं पुण अस्संजए भिक्खुपडिया कडिए वा उक्कंचिए वा छने वा लित्ते वा घट्टे वा मट्टे वा समट्टे वा सेपधूमिए वा तहप्पगारे उस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णासेविए नो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहिं वा चेइज्जा, अट पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडे जाव आमेविए पडिले हित्ता २ तभ चेइज्ज्जा ॥ ( सू० ३४ ) ते भिक्षु उपाश्रयमा रहेवाने जो इच्छतो होय तो गाम विगेरेमां जाय, त्यां जइने साधुने योग्य वसति शोधे, त्यां जो इंडां विगेरे, जंतु युक्त मकान होय, त्यां वास विगेरे न करवो, ते बतावे छे स्थान ते काउपर शय्या ते संधारी करवो. निपीधिका ते स्वाध्याय (भणवानुं ) आ त्रण न करवां, ( अर्थात् जीव जंतुवाळा मकानमां उतरं नहि.) पण जेमां जंतु न होय त्यां उतरी ते काउसरग विगेरे करवो हवे उपाश्रय संबंधी उद्गम विगेरे दोषो बतावे छे. भिक्षु एवं जाणे के कोइ श्रावके आ उपाश्रय कराव्यो छे, पण ते एक साधु जे जिनेश्वरनी आज्ञा प्रमाणे अनुष्ठान करे छे, For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥९४७॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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