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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाप लागवा न दे अने तेमां धैर्य अने संहनन विगेरे मजबुत होय तो शरीरनी वैयावच्च न करे, अने चडता शुभ भावना कंडकवाको आचार बनी अपूर्व भावनी धाराए चढीने सर्वज्ञना कहेला आगम अनुसारे पदार्थना स्वरुपना निरुपणमां पोतानी मति स्थिर करीने सूत्रम् | आ शरीर आत्माथी जुद् छे. माटे त्यागवा जोग छे एको विचार करीने बधा दुःखना स्पर्शाने तथा अनुकूळ प्रतिकूळ आवेला ॥७९९॥ | उपसर्ग परीसहोने तथा वातपित्त कफना द्वंद्व अथवा जुदा रोगो आवे तो मारे कर्मक्षय करवानो होवाथी हुँ उठ्यो छ माटे मारेज ||॥७९९॥ | आ पूर्वे करेलां पापने भोगववा जोइए. आवो विचार करीने दुःख सहे. कारण के में जे शरीरने त्याग्यु छे. एनेन उपद्रव करशे, पण जे धर्म आचरणने करवूछे, तेने बाधा लगाडे तेम नी. 18|माटे तेवु विचारीने सहे. (१८) इङ्गित मरण का हवे पादपोपगमन अणसण कहे छे. ते जोडाजोड कहेल होवाथी आ विशेषणवडे || | मरणनो विधि बताव्यो छे. आ आयत तर छे ते बतावे छे. मर्यादानी विधिमां आ उपसर्ग छे. ते संपूर्ण यत थतां आयत शब्द छे. | अने उपरना बे अणसण करतां वधारे आयत छे, माटे आयत तर छे. ___ अथवा उपरना बन्ने अणसणथी अतिशय आत्त छे. माटे आत्ततर छे अर्थात् यत्नवी अध्यवसायवाला छे. प्रथम कहेला वे 4 | अणसण करतां पादपोपगमन वधारे दृढतर छ एमां पण इङ्गित मरणमा कह्या मुजब प्रवज्या संलेखना विगेरे बधु जाणवू. ___०-जो आ आयततर छे तो शुं करवु? उ०--कहे छे. जे भिक्षुक आ कहेली विधिएज पादपोपगमन विधिने पाळे तथा शरीरना बधा व्यापार छोडवाथी काया तपे अथवा मूर्छा पामे अथवा मरण समुद्घात आवे, अथवा लोही मांस शियाळीया गीध कीडीओ विगेरेथी खवाय, पीवाय, तो पण महा सखना कारणे पोते जाणे के आ इच्छित मोटुं फळ आव्यु छे तेथी ते स्नानथी For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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