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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् आचा०18 साधुनी संपूर्णता छे, (आ मूत्रमा मांस-मदिरावाळां कुटुंचमांथी कोइए दीक्षा लीधी होय, तो तेवाए सगांने घेर गोचरी जुदा || दिन जवं, तेज श्रेयस्कर छे, कारणके कुबुदि केवी खराब छे, अने तेनुं जैन धर्ममां के प्रायश्चित छे ते नीचेन बनेल | ॥८९५॥ | दृष्टांत वांचवा जेवु छे. 11८९५॥ | (कुमारपाळ राजाए जैनधर्म स्वीकार्या पहेलां मांसभक्षण करेलुं अने पाछळथी त्याग कर्यु हतुं, तेने एक समये घेबर खातां | | मांसनो स्वाद आव्यो, तेथी श्रीमान हेमचंद्र आचार्य पासे आवीने पूछयु, के मने वेबरखावु कल्पे के नहि ? गुरुए कह्यु के नहि.४ प-शामाटे ? उ-पूर्वनो दुष्ट स्वभाव मांसभक्षणनो याद आवे. कुमारपाळे कह्यं के त्यारे जो तेवू स्मरण थयुं होय तो तेनुं मने | प्रायश्चित शुं आवे ? उ-बत्रीश दांत पाडी नांखवान. तेज समये लुहारने बोलावी दांत खेंची काढवा का, त्यारे हेमचंद्राचार्य ते | राजानी दृढता जोइ बीजु प्रायश्चित आप्यु आथी समजवान ए छे के 'तेवा' मांसभक्षणवाळा कुटुंबोमां जतां कुमारपाळ | माफक खराब चीज याद आवी जायतो साधुपणुं भ्रष्ट थाय, पण वीजा साधु साथे होय तो तेनी शरमथी त्यां रहेनारो साधु पण । बचे, अने सगांने पण मांस भक्षण न करवा बोध मळवाथी पापथी बचे. चोथो उद्देशो समाप्त. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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