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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥८९१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छे, त्यां रस्तामाँ जतां बहु पतंग विगेरे माणीओ होय छे, तथा बहु बीज, बहू हरित, बहु अवश्याय घणुं पाणी बहु उलिंग पनक भींजवेली माटी करोळीयानां जाळां होय छे, तथा त्यां जमण जाणीने घणा श्रमण ब्राह्मण अतिथि कृमण वणीमग आव्या, आवशे अने आवे छे, ते चरक विगेरेथी व्याप्त होय छे, तेथी बुद्धिमान साधुने त्यां जनुं आवकुं कल्पे नहि, तेम त्यां जनारने गीतवाजना संभवथी भणवं भणाव अर्थचिंतयन त्रिगेरे थइ शके नहि, तेथी ते साधुने आवतां जतां घणो काळ लागे, तेथी बहु दोषवाळी संखडिमां ज्यां मांस विगेरे मुख्य छे, तेवा प्रथमना जमणमां के पाछळना जमणमां तेने उद्देशीने साधुए जनुं नहि, हवे अपवाद मार्ग कहे छे. भिक्षु मार्गमां विहार करतां दुर्बळ धाय, मंदवाडमांथी उठ्यो होय, तपचरणथी दुर्बळ थयो होय, अथवा बीजे कर आहार मळे तेनुं स्थान न होय, अथवा त्यांज दवानी चीज मळे तेम होय, तो तेवा जमणमां कारण प्रसंगे जनुं पडे तो जे रस्ते सूक्ष्म जीवो घास बीज के वचमां कांइ न पड्युं होय, तो ते रस्ते मांस विगेरेना दोषो दूर करवा समर्थ होय तो कारणे जाय, अने | पोताने खपनी भक्ष्य वस्तु लइ आवे. (जैनोमां दश विकृति विगह छे. घी, दूध, दहीं, तेल, गोळ, कडाइ एटले एकलं घी, के दूध, दहीं, तेल, गोळ अने कडाइमां घी, तेल पुष्कळ नांखीने तळेल होय ते कडाइ विगय कहेवाय, आ पदार्थों जरूर पडे तो लेवाय छे, पण मांस मदिरा मांखण अने माखी वीगेरेनुं मध. ए अभक्ष्य छे, कारणके तेमां जीवोनी उत्पत्ति छे। अने ते खानारने इंद्रियो | दमन करवी तथा सुबुद्धि राखवी दुर्लभ छे, माटे जैन साधु के श्रावकने वर्जवा योग्य छे, माटे बने त्यांसुधी तेवा रस्ते पण जवानो निषेध छे, वखते खराब वस्तुनी दुर्गंधी आवे तो पण बुद्धि भ्रष्ट थाय छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥८९१ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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