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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥૮॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य पण नवा चेलाने दीक्षा आपीने तेज दिवसथी साधुनी दश प्रकारनी समाचारीनो उपदेश, तथा अध्यापन ( भणाववावडे) ज्यांसुधी ते गीतार्थ थाय; त्यांसुधी पाळे; पण जे चेलो आचार्यना उपदेशने उल्लंघोने पोतानी इच्छा प्रमाणे स्वतंत्र त्रिचरी कंपण क्रिया करे; तो ते (लाभ मेळववाने बदले) उज्यन नगरना राजकुमारनी माफक दुःख पामे ते बतावे छे. उज्यन नामनुं नगर छे, तेमां जीतशत्रु नामनो राजा छे तेने वे पुत्रो छे. मोटा पुत्रे धर्मघोष आचार्य पासे संसारनी असारता समजीने दीक्षा लोधो, अनुक्रमे आचारांग विगेरे शास्त्रो भणीने तेनो परमार्थ समजीने जिनकल्पने स्वीकारवानी इच्छाथी बीजी सत्वभावनाने भावे छे, ते भावना पांच प्रकारनी छे. (१) उपाश्रयमां (२) तेनी बहार (३) त्रीजो तथा चोथो शून्यघरमां, तथा पांची भावना मसाणमां छे, ते पांचमी भावनाने भावतो हतो. ते समये मोटाभाइना प्रेमथी नानोभाइ खचाइने, आचार्य पासे आवीने बोल्यो केः मारो मोटोभाइ कयां छे ? साधुए कं तोरे भुं काम छे? तेणे कछु के:-मारे दीक्षा लेवी छे. आचार्य कः - तुं प्रथम दीक्षा ले, पछी तारो भाइ देखीश. तेणे दीक्षा | लोधी; अने पूछयुं. मोटो भाइ क्यां छे ? आचार्ये कथुं : — देखवानी शुं जरुर छे ? कारण के, ते कोइथी बोलतो नथी, अने ते | जिनकल्प धारण करवा इच्छे छे. नानाभाइए कः तोपण, हुं तेने जोश, घणो आग्रह करवाथी मोटोभाइ बताव्यो, ते चुप बैठेलो नानाभाइए वांद्यो. पछी, मोटाभाइ उपर घणो प्रेम होवाथी आचार्ये ना पाडी, उपाध्याये रोक्यो; साधुओए पकडी राख्यो; अने ते नानाभाइने बोल्या:-- के आ स्मशानमा रहेवानुं, तारे अमुक समय सुधी थोभवानुं छे. कारण के, तारा जेवाने ए कठण अने विचारमां पडवानुं छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम દ્રા
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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