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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie BAR सूत्रम् ॥६११० 1 भेदथी भेदो योजाय छे, स्थविर कल्पिाचार्यो प्रथम भंगमां छे, बीजा भांगामां तीर्थकरो छे, त्रीजा भांगामां अहालंदिक छे तेमने ४ आचा० ल कोइ वखत अर्थनी प्राप्ति थइ न होय, त्यारे आचार्य विगेरे पासेथी तेमने तेना निर्णयनो सद्भाव छे, अने प्रत्येक बुद्धोने उभय ॥६११॥ [लेQ आपq ने भणबु भणाववं] तेनो निषेध होवाथी तेओ चोथा भांगामां छे, पण आ जग्याए प्रथम भंगमां आवेला ने भणचा 8 भणाववानो सद्भाव होवाथी तेनो अधिकार छे, अने तेवा हृदरुप आचार्यनोज अहीं दृष्टांत छे, अने ते हृद निर्मल जलनो भरेलो & तथा सर्व ऋतुमा जन्मनारा [उत्पन्न थनारां] कमळोथी शोभायमान छे, समभूभागमा रहेल पाणीनुं नीकळवू अने आव, नित्यजट Pथाय छे, पण कोइ दहाडो सुकातो नथी, अने सुखेथी तेमा तरवार्नु तथा नीकळवानुं बनी शके तेवो छे, तथा उपशांत ते रज विगेरे जे पाणीने कालु बनावे ते जेमांथी दर थयेल छे, तथा जुदी जुदी जातना जळचर जीवोना समूहने बचावतो अथवा जळचर जीवोबडे पोतानी रक्षा करतो रहेल छे, आ आपणी चालु क्रिया दृष्टांतमा लेवानी एटले आ हृद जेबा आचार्य छे, ते प्रथम भांगाना द लेवा, पांच प्रकारना आचार युक्त छे. अने आचार्यनी आठ प्रकारनी संपदाथी जोडायेलो छे, ते बतावे छे. आयार सुअ सरीरे वयणे वायण मई पओगमई । एए सुसंपया खलु अहमिआ संगहपरिन्ना ॥१॥ आचार, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, मति, प्रयोगमति, अने आठमी संग्रह-परिज्ञा छे. अर्थात् आचारमा सारो, सिद्धांतनुं 18/ पूर्वापरतुं ज्ञान, शरीर सुंदर, वचन माननीय होय; वाचना आपत्रामा होशीयार होय; बुद्धि तीक्ष्ण होय; प्रयोगमतिवाळो, तथा 8 ला साधु-समुदायने योग्य उपकारण विगेरेनो संग्रह करनारो होय. SSACRECACAS A AES For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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