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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६६४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेळवीने मेळवेल पुण्य पापपणाथी अभिसंबुद्ध जाणवा, त्यार पछी सत् असत्नो विवेक जागनारा होय ते अभिनिष्क्रांत छे, त्यार पछी आचारांग सूत्र भणेला तथा तेनो अर्थ समजीने चारित्र पाळनारा अनुक्रमे प्रथम शिक्षक (शिष्य) गीतार्थ पछी क्षपक (तपस्त्री) पछी परिहारविशुद्धि चारित्रवाळो तथा एकलविहारी जिन कल्पिक सुधी ऊंचे चढनारा मुनिओ बने छे. अने कोइ अभिसंबुद्ध पुरुष दीक्षा लेवा तैयार यो होय तो तेन पोतानां समां जे करे ते कहे छे. तं परिकमंतं परिदेव माणा मा चयाहि इय ते वयंति ! छंदोवणीया अज्झोववन्ना अकंदकारी जणगारुति, अतारिसे मुण [य] ओहं तरए जणगा जेण विष्वजढा, सरणं तत्थ नो समेइ, कहं नु नाम से तत्थ रमइ ?, एयं नागं सया समणुवासिज्जासि तिबेमि (सू० १८०) धूताध्ययनोदेशकः ६-१ जे तत्व स्वरूप जाणीने गृहवासथी पराङमुख बनीने महा पुरुषोए आचरेला मार्गे जवा ( दीक्षा लेवा ) तैयार थयो होय तेने माता पिता पुत्र कलत्र वगेरे मळतां ते समां तेने रोइने कहे छे, के अमने तुं न त्यज, एम दया उपजावतां बोले छे, तथा बीजुं शुं बोले छे, ते कहे छे, ताराचंद (अभिप्राय) ने अमे अनुकुल छीए, तारा उपर अमारो पूर्ण विश्वास छे, तेथी अमने न छोड, एम आक्रंद करीने ते सगां रडे छे, वळी आ प्रमाणे बोले छे, के "तेवो मुनि संसार तरी शकतो नथी के जे पाखंड ( मुनिना बोध ) थी ठगाइने मात्रापने त्यजीने दीक्षा ले." आम कहे, तो पण जेणे संसारनुं तत्व जाण्युं छे, तेवां जे करे, ते कहे छे, जो के आ सगां मारा उपर पूर्ण प्रेमी छे, छतां पण ते खरे खते शरण आपतां नथी, अर्थात् तेमनुं शरण स्वीकारतो नथी, शा माटे आ शरण नथी ? ते कहे छे, ते गृहवास वधा तिरस्कारने योग्य नरकना प्रतिनिधि समान अने शुभद्वारने परिघ समान छे, तेमां कोण For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ ६६४ ॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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