SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा०15 सूत्रम ॥६६२॥ ॥६६२।। नहन PUCE9%ालर पण पाणीओने दुःखरुप चिकित्सा (उपाय) करवाथी फक्त नवां पापोज बंधाय छे, ते कहे छे, के हे शिष्यो! विमळ विवेकरुप र ज्ञान चक्षुवडे धारीने जुभो ! के ते रोगाने दूर करवा चिकित्सा विधिओ समर्थ नथी. प्र०-जो एम छे तो शुं करवू ? उ-'अलं' हे शिष्य तुं ! सारा नरसानो विवेकवाळो छ, माटे तारे एवी पाप चिकित्सानी जरुर नथी ! किंच-वळी पाणीने दुःख देवारुष कृत्य बहु भयरुप होवाथी महा भय तरीके हे मुनि! तुं तेने जाण-(त्रण जगतना स्वभावने जाणे, माने ते मुनि छे) -जो एम छे तो शुं करवू ? उ-कोइ पण पाणीने तुं हणतो नहि, कारण के एक पण पाणीने हणतां आठे प्रकारनां को बंधाय छे, अने तेनो क्षय न कराय तो संसार भ्रमण करावे छे. माटे महाभय छे, अथवा उपर कहेला रोगो बहु प्रकारे जाणीने कुवासना ने आश्रयी ते जाणवा, अर्थात् कामो (कुचेष्टाओ) पोतेज रोगरुप छे, ए, अतिशे जाणीने जेम आतुर बनेला कामचेष्टामां अंधा थएला जीवो बीना पाणीओने दुःख दे छे, (तेम तमारे न देवू) ए प्रमाणे रोग अने काम चेष्टामां आकुळ थयेला सावध अनुष्ठाॐनमा प्रवर्तेलाने उपदेश आपवारुप महा भयरुप जीव हिंसा बतावीने तेवी हिंसा न करनारा गुणवान (मुनिराजो) ना स्वरुपने बताववा प्रस्ताव रचीने बतावे छे:__ आयाण भो सुस्सूस! भो धूयवायं पवेयइस्सामि इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं आभसेएण अभिसंभूया अभिसंजाया। अभिनिव्वुडा अभिसंवुड अभिसंबुद्धा अभिनिता अणुपुव्वेण For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy