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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६५०॥ www.kobatirth.org त्रिदोष जायते यक्ष्मा, गदो हेतुचतुष्टयात् वेगरोधात् क्षयाच्चैव साहसाद्विपमाशनात् ||१|| अपस्मार त्रणदोषवाळो यक्ष्मा (क्षय) नामनो रोग वीर्यना वेगना रोधथी वेगना क्षयथी, साहस करवाथी; तथा विषम [ अयोग्य ] खोराकथी- एम चार कारणे थाय छे, तेज प्रमाणे अपस्मारनो रोग वात, पित्त अने कफना संनिपातयी चार प्रकारे छे, ते रोगवाळो सारा माठाना विवेकथी विकल होय छे, तथा भ्रम (चक्री) मूर्छा विगेरेनी अवस्थाने ते रोगी भोगवे छे. कहां छे के, भ्रमावेशः ससंरम्भो, द्वेषोद्रको हृतस्मृतिः अपस्मार इति ज्ञेयो, गदो घोरश्वतुर्विधः ||२|| भमेळ चडे, मूर्छा विगेरे थाय, द्वेषनो उछाळो थाय, विसरी जवानी टेव थाय, एम चार प्रकारनो आ घोर रोग जाणवो. तेमां ब्रह्मरंध्र पर्यंत भ्रमण करनारो वायु छे, तेनुं मुख्य स्थान हृदयनो प्रदेश छे. तथा 'काणियंति' अक्षि [ आंख ] नो रोग बे प्रकारे छे, प्रथमनो गर्भमांज रोग थाय छे, अने बीजो जन्म्या पछी थाय छे, तेमां गर्भवाळाने दृष्टिनो भाग अपूर्ण होय छे, तेने तेज ( प्रकाश ) जन्मथी आंधळो बनावे. तेज प्रमाणे, एक आंखमांथी तेज जतां काणो बनावे छे. तेज प्रमाणे रक्तप णामां जतां, रक्तता - [लालाश आंखमां वधारो होय.] पित्तपणामां जतां, पिंगाक्ष [ पीळी आंखवालों] अने श्लेष्मपणाने पामतां शुकलाक्ष (घोळी आंखवाळो ) बने छे, वातने पामतां विकृत आंखवाळो बने छे, अने जन्म्या पछी जे रोग थाय; ते वात विगेरेथी अभिष्यंद - ( आंखमांथी पाणी झर) थाय छे. कहां छे के: वातात्पित्तात् कफाद्रक्ता, दभिष्यन्दश्चतुर्विधः प्रायेण जायते घोरः वात, पित्त, कफ, अने रक्त- (लोही.) ए चारथी अभिष्यंद चार प्रकारे पाणी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only सर्व नेत्रामयाकरः ॥ १ ॥ झरतुं थाय छे, अने पायेकरीने तेथीज सूत्रम ॥६५०॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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