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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IG सूत्रम् ॥६४७॥ & तानी गरदनने बहार काढी; ते समये त्यां तेणे शरदऋतुना चंद्रनां चांदरणाथी क्षीरसागरना पाणीना प्रवाहथी छवाइ रहेलं शोभाआचा० * यमान बनेलु तथा, खीलेला कुमुदना समूहथी पूजा करवा जेवा उगेला ताराओथी भराइ गयेलुं आकाश जोयु. ॥६४७॥ ____आवु देखीने ते घणो खुश थयो; अने तेना मनमां आ प्रमाणे संकल्प थयो के–मारा सहचारी मित्रो आ स्वर्गसमान पूर्व न देखेनुं मनोरथ (विचारमा) पण, न कळी शकाय; तेवू ते काचवाओ जुए, तो बहु सारुं थाय. आ प्रमाणे विचारो शीघ्रताथी MI पाताना बन्धुओने शोधवा माटे भटक्यो; अने तेमने मळीने तेमने तेवू बताचवा माटे पेलं छिद्र शोधतो आम तेम भटके छे, छतां, होजनी विस्तीर्णताथी, तथा जीवोनो समूह त्यां घणो मोटो छे, नेथी ते छिद्र मेळवी शक्यो नहिः पण, त्यांज ते, (विनादेखे) मरण X पाम्यो. तेनो सार आ लेबानो छे के-संसाररुपी-होज छे. तेमां जीवरुपी-काचयो छे, कर्मरुपी-चीकणी सेवाळ छे, तेमां छिद्र | समान-मनुष्यजन्म, तथा आक्षेत्र सुकुळ मां जन्म मळयो; अने सम्यक्त्वनी प्राप्तिरुप-मुंदर चन्द्र वाळं आकाशतळ मेळवीने मोहना उदयथी पोतानी ज्ञाति माटे, अथवा विषयस्वादना उपभोग माटे सारां संयममा अनुष्ठान न करता, सफळता (मोक्षने) पामतो नथी; अने तेवीरीते वखन गुमावी; ते सामग्री गुमावी देवाथी पाछोकाचवाना विवर माफक क्याथी तेवी उत्तम सामग्री मेळवी शके ? आ कारणथी गुरु उपदेश आपे छे के, हे भव्य ! सेंकडो भवोमां पण, दुष्पाप्य एवं कर्मविवररुप-सम्यक्त्व पामीने एकक्षण 12 मात्र पण, तमारे प्रमादवाळा न थq. फरीथी पण, संसारलुब्ध-जीवोनुं बीजं दृष्टांत कहे छे:8 भंजगा-वृक्षो पोते ठंड, ताप, धुजारो [कंप] छेदन शाखा (डाळीओनु) खेंचबु क्षोभ पमाडवो मरडवु भांगीनाखवू. ल एवां अनेक उपद्रवों ने सहेवा; छतां पण, पोतानां स्थानने तेमां स्थिर बनीने ते छोडतां नथी. ते प्रमाणे साधुने बोध आपे छे के, CEBOOK For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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