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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम ॥७८४॥ ॥७८४॥ जातिना अनुकूळ के प्रतिकूल विरूपरूपवाळा फरशो सहन करवाने हुं शक्तिवान छु,पण लज्जाने लीधे गुह्य प्रदेशने ढांकवानी जरुर होवाथी ते छोडवा हुं चाहतो नथी. अने आ स्वभावथीन अथवा साधनना विकृत रुपपणाथी ते साधुने शरम लागे, तो तेने चोळपट्टो पहेरवो कल्पे छे, अने ते पहोळाइमां एक हाथने चार आंगळनो होय, अने लंबाइमां केडना प्रमाणमां होय, तेवो गणतरीनो एक राखे पण, जो तेवां कारणो न होय, तो अचेलपणेज विहार करे, अने अचेलपणेज ठन्ड विगेरे स्पर्श सारी रीते सहन करे, ए बताववा कहे छे. अदुवा तत्थ परकमंतं भुजोअचेलं तणफासा फुसन्ति सोयफासा फुसन्ति तेउफासा फुसन्ति दंसमसगफासा फुसन्ति एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ, अचेले लावियं आगममाणे जाव समभिजाणिया (सू० २२४) । ए७ कारण तेने होय, तो ते साधु वस्त्र धारण करे, अथवा पोते लज्जा न पामतो होय, तो अचेल रही संयम पाळे, अने वस्त्ररहित संयम पाळतां तेने तृणना फरशो फरशे, तथा ठंड ताप डांस मच्छरना फरसो दुःख दे तेवा एक जातना के जुदो जुदी जातना भोगववा छतां पोते अचेल रही कर्मनु लाघवपणुं माने, अने तेमांज समत्व माने, वळी प्रतिमाधारी साधुज विशेष अभिग्रह धारण करे, ते आ प्रमाणे के हुं बोजा पतिमाधारी मुनिओने किंचित् आपीश, अथवा तेमनी पासेथी लेइश एवो कोइ पण जातनो अभिग्रह धारण करे, तेनी चोभंगी कहे छे, For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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