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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७७५ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( वाक्यनी शोभा माटे छे) जे साधुने आवो विचार थाय के “हुं एकलो लुं, संसारमां भ्रमण करतां परमार्थ दृष्टिए जोतां मने उपकार करनार बीजो कोइ नथी, अने हुं पण बीजा कोइना दुःखने दूर करवामां सहायक नथी, कारण के पोताना करेला कर्मनुं फळ भोगववामां सर्व जीवोने इश्वर [समर्थ] पशुं छे " आ प्रमाणे आ साधु पोताना आत्माने अन्तरदृष्टिए सम्यग् रीते एकलो जाणे, अने आ आत्माने नरक विगेरेनां दुःखोथी बचाववा शरण आपना योग्य बीजो नथी, एवं मानतो होय ते पोताने जे जे रोग विगेरे दुःख देनाएं कारणो आवे, त्यारे बीजाना शरणनी उपेक्षा करतो "में कर्यु छे माटे मारेज भोगवकुं" आवो निश्चळ विचार करीने सम्यग् रीते भोगवे छे. प्र० - ते केवी रीते एम समताथी सहन करे ? उ० - लाघविय विगेरे चोथा उद्देशा २१५ सू०मां बतान्युं ते " समत्वप जाणवुं " त्यांसुधी जाणवुं, के आ साधुने कर्मनी लघुता थवाथी आ लोक परलोक बन्नेमां हित सुख निश्रेयस माटे थाय छे अने परंपराए मोक्ष फळ आपनार छे—तेथी तेणे एकत्वभावना भाववी आ अध्ययनना बीजा उद्देशामां उद्गम उत्पादन एषणा बतावी ते आ प्रमाणे "आउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा ४" विगेरे सू० २०२मां बतान्युं ते प्रमाणे पांचमां उद्देशामां ग्रहण एषणा बतावी, "सीया य से एवं वयं तस्सवि परो अभिहडं असणं वा ४ आह दलएजा इत्यादि [मुत्र २१६मां वचमां आ पाठ हे ] आ सुत्रवडे ग्रास एषणा बतात्री तेने हवे पछीना सूत्रमां विशेषथी बताववा सूत्र कहे छे. सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारे माणे नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥७७५॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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