SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७६८॥ www.kobatirth.org जे भिक्खु दोहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायतइएहिं तस्स णं नो एवं भवइ तइयं वत्थं जाइसामि, से अहेसाई वत्थाइ जाइजा जाव एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं, अह पुण एवं जाणिजा - उवाइकंते खलु हेमंते गिम्हे पडिवण्णे, अहापरिजुन्नाई वत्थाई परिहविज्जा, अहापरिजुन्नाई परिचित्ता अदुवा संतरुत्तरे अदुवा ओमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लावियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्च सबओ सबत्ताए सम्मतमेव समभिजाणिया, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ - पुट्ठो अबलो अहमसि नालमहमंसि गिहंतरसंक्रमणं भिक्खायरियं गमणाए, से एवं वयंतस्स परो अभि असणं वा ४ हद्दु दलइज्जा, से पुवामेव आलोइज्जा आउसंतो ? नो खलु में कप्पइ अभिहर्ड असणं ४ भुत्तए वा पायए वा अन्ने वा एयप्पगारे ( सू० २१६ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मां त्रण कल्पमा रहेल स्थविरकल्पी अथवा जिनकल्पी मुनि होय, पण वे कल्प (वस्त्र) धारण करनार अवश्ये जिनकल्पी होय, अथवा परिहार विशुद्धिक अथवा यथालंदिक के प्रतिमाधारी तेमांनो कोइ पण होय, आ सूत्रमां बतावेल जे जिनकल्पी विगेरे. बे वस्त्र धारण करनारो होय, आमां वस्त्र शब्द सामान्यथी लीयो छे, माटे एक मूत्रनुं बीजं उननुं एम वे वस्त्र धारण करी संय For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥७६८ ॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy