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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit आचा० ॥७६३॥ विजा अदुवा संतरुत्तरे अदुवा ओमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले (सू० २१२) सूत्रम् जो, ते वस्त्रो बीजा शीयाळा सुधी चाले तेवां होय, तो बन्ने वखते पडिलेहणा करी धारण करे; अथवा, पासे राखे पण जो जीर्ण जेवां थइ गयां होय तेवू जाणे तो, ते त्यजी दे ते आ सूत्र बडे बतावे छे. पछी ते साधु एम जाणे के, निश्चे हवे हेमंत P७६३॥ ऋतु [शीयाळो] गयो; अने उनाळो आव्यो छे. टंड पण दूर थइ छे, अने आ वस्त्रो पण जीर्ण थइ गयां छे. एवं जाणीने ते वस्त्रो है त्याग करे. जो बधां जीर्ण थयेलां न होय; तो जे जे जीर्ण होय ते परठवी दे, अने त्यागीने निःसंग थइने विचरे. पण जो शिशिर (पोष माघ) वीत्या पछी कोइ क्षेत्र काळ के पुरुषने आश्रयी शीत (उन्डी) वधारे लागती होय तो शुं करवू ? ते कहे छे:-शीत जतां वस्त्रो त्यागवां अथवा क्षेत्रादिना गुणथी हिम पडनारो वायरो ठन्डो वाय तो, आत्मानी तुलना तथा ठन्दनी परीक्षा करवा सान्तर उत्तर वस्त्रवाळो थाय. अर्थात् तेमांथी कांइक तो ओढे; कांइक वाजुए राखे पण, ठन्डनी शंकाथी त्यजी न दे. अथवा अवम चेल [ओछां वस्त्रवाळो] ते एक कल्पना त्यागवाथी वे वस्त्र धारण करे, अने धीरे धीरे ठन्ड जतां बीजं वस्त्र पण दूर करे, तेथी एक साडो (चादर) थी शरीर ढांकनारो बने, अथना तद्दन शीतनो अभाव थाय तो ते पण त्यजी दे, अने पोते अचेल (वस्त्र रहित) बने एटले तेनी पासे मात्र मुहपत्ति अने रजोहरण (ओघो) ए बेज मात्र उपधि रहे. म०-ए एक वस्त्र पण शा माटे त्यजी दे? ते कहे छे. लावियं आगममाणे, तवे से अभिसमन्नागए भवइ (सू० २१३) For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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