SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७५६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेवाथी बचलां त्रण आवे छे.) तेथी जुठ न बोलता चोरीने त्यागी ब्रह्मचर्य पाळता विचरे एवा साधुओ पोताना देहमां पण ममत्व त्यागे छे, एमज बधा लोकने विषे कोइपण जातनो परिग्रह तेओ राखता नथी. (च समुच्चयना अर्थमां छे. अने ते भिन्न क्रम बतावे छे. णं वाक्यनी शोभा माटे छे.) वळी प्राणीओने दंडे ते दंड छे. अने ते दंड बीजा जीवने परिताप करनार छे. ते दंडने प्राणी तरफ अथवा प्राणी विषे नांखवाथी पाप थाय कर्म बंधाय तेथी ते पाप रुप कर्म ते अहार प्रकारनुं छे. तेने पोते उत्तम साधु आचरतो नथी. तथा वाह्य अभ्यन्तर ग्रन्थ छे तेने त्यागवाथी तेवा साधुने तीर्थङ्कर गणधर विगेरेए अग्रंथ (निर्ग्रन्थ) कह्यो छे. प्र० - आवो कोण थाय ? उ० – 'ओजः ते अद्वितीय एटले रागद्वेप रहित होय छे, तथा द्युतित्राको एटले संयम अथवा मोक्ष | छे तेना खेदने जाणनारो छे. अने ते निपुण होवार्थी देवलोकमां पण उपपात च्यवन छे. एम जाणीने विचारे छे के वध संसारी स्थान अनित्य छे. एवी बुद्धिधी पोते पाप कर्मने वर्जनारो थाय छे. केटलाक पुरुषो तो मध्यम वयमां पण चारित्र लीवेला परिषह तथा इन्द्रियोथी ग्लानता पामे छे. ते बतावे छे. आहारोवचया देहा परीसहप भंगुरा पासह एगे सविदिएहिं परिगिलायमाणेहिं (सु० २०८) आहारथी उपचय थाय ते आहारोपचय छे. प्र०—ते कोण छे ? उ० – देहो छे. ते देहो आहारना अभावमां झांखाश लावे छे अथवा ते नाश पामे छे. ते प्रमाणे परिहो आवेथी भंगुर छे. तेथी आहारथी देहो पुष्ट थया छतां पण परिषहो आवतां अथवा वायु विगेरेना अटकावथी ग्लानी पामे छे. एटले गुरु शिष्य ने कहे छे. हे शिष्यो तमे जुओ के केटलाक बधी इन्द्रयो झांखी पडतां कलीबताने पामे छे. ते बतावे छे. भूखथी For Private and Personal Use Only सूत्रम ।। ७५६।।
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy