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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18/ भोजन विगेरे मेळवशो एटले बीजी जग्याए मळे न मळे अथवा खाइने अथवा विना खाधे अमारी धीरजने माटे तमारे अवश्य | आचा० + आवq, जो न मळे तो लेवा माटे अने मळे तो वधारे खावा माटे वारंवार भोजन माटे न खाधुं होय ते वखते सवारनो नास्तो क सत्रम परवा अमारी धीरज माटे कोइ वखत पण आवर्बु अथवा ज्यारे तमने जे कल्पे तेवु अमे तमने आपशुं वळी अमारो मठ तमारा रस्ता॥७३॥ मांज छे कदाच तमे बीजे रस्ते जता हो तो थोडो फेरो खाइने पण आडा मार्गे बीजे घेरे जइने पण अमारे त्यां आवq आ आगम- 5॥७३॥ ६ नमां खेद मानवो नहीं (आ प्रमाणे प्रेम धरावी जैन साधुने बौद्ध विगेरेना साधु आमंत्रण करे.) प्र-शा माटे आq बौद्ध साधु । करे छे ? उ०-ते कहे छे विभक्त (जुदा) धर्मने पाळता अने कदाच जैन साधुना उपाश्रयमां आवीने अथवा रस्तामा जतां निमंत्रण B करे अथवा पोतानी पासेनुं भोजन विगेरे आपे अथवा भोजन आपवानी निमंत्रणा करे अथवा भक्त माफक वैयावच्च करे आ बधु जैन साधुने कुशील साधुनुं न कल्पे तेम तेनो परिचय पण न करे केवी रीते जैन साधु रहे ? उ०-ते कुशील साधु बहु मानथी साधु नो आदर करे तोपण पोते तेमां गृद्ध न थाय तोज दर्शनशुद्धि साधुनी रहे छे, (जो तेवा कुशीलनी सोबत करे तो जैन साधुने पोताना कठण संयममा अनादर थाय अने पोते पण तेवू कुशील आचरे.) अथवा हवे पछी- पण सुधर्मास्वामी कहे छे. इहमेगेसिं आयारगोयरे नो सुनिसंते भवति ते इह आरंभट्ठो अणुवयमाणा हण पाणे घायमाणा हणओ यावि समणुजाणमाणा अदुवा अदिनमाययंति अदुवा वायाउ विउजति, तंजहा-अस्थि लोए नस्थि लोए धुवे लोए अधुवे लोए साइए लोए अणाइए लोए सप SAIRECAPTA-मान हवाबाबत For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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