SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥७३०॥ ६ वारंवार करे. आ प्रमाणे चार वरस सुधी अनुक्रमे बधुं करीने सामर्थ्य होय तो गुरुनी आज्ञा लइने पहाडनी गुफामां जइने निर्दोष Talaजग्या जोइने पादप उपगमन अणसण करे इङ्गित मरण अथवा भक्त प्रत्याख्यान जेम समाधि रहे तेम करे आ प्रमाणे बार वर सनी संलेखना कर्म बडे आहार ओछो करता आहारनी अभिलाषानो उच्छेद थाय छे ते वे गाथा वडे बतावे छे. ॥७३०॥ ___ कह नाम सो तवोकम्मपंडिओ जो निच्चुजुत्तप्पा । लहुवित्तीपरिक्खेवं वच्चइ जे मंतओ चेव ? ॥२७४|| ____ आहारेण विरहिओ, अप्पाहारो य संवरनिमित्तं । हासतो हासतो, एवाहारं निरंभिज्जा ॥२७५।। केवी रीते ए साधु तप करवामां पंडित थाय ? जे नित्य उद्युक्त आत्मा बनीने बत्रिस कोळियाना परिणामवाळी वृत्ति न राखे? Pएटले दिवसे दिवसे लघु वृत्तिनो परीक्षेप न करे; तो, तप कर्ममां पंडित केवी रीते थाय (जो, गोचरीमा लोलुपता राखी वधारे। वधारे खाय; तो, ते तप करवामां निपुण न थाय;) तथा आहार वडे बेत्रण दिवस मुधी वियोग करे. अर्थात् बेत्रण पांच छ उप5 वास करी; पछी पारणुं करे तो, शा माटे अल्पाहारी न थाय ? (थायज) प्र-शा माटे तप करे ? उ०-अणसण करवा माटे, आ प्रमाणे उपवास करतो तथा दरेक पारणामां अल्पाहारने लीधे 5 ओछो ओछो करतां टेव पडतां उपर बतावेली विधिए भक्त पचरुखाणर्नु अणसण करे. नाम निक्षेपो कहो. हवे मूत्र अनुगममा अस्खलित विगेरे गुणयुक्त मूत्र कहेवू. ते कहे छे: से बेमि समणुन्नस्स वा असमणुन्नस्स वा असग वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं GEOGRAPES बाबाबालक CERIES For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy