SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७२७॥ www.kobatirth.org अनुपूर्वी (क्रम) ने पामे, ते अनुपूर्वीग छे. म० ते आदेश क्यो छे ? (आ देशनो अर्थ वृद्धवाद छे.) ते वृद्धवाद आ प्रमाणे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम आत्मार्थी जीवने दीक्षा आपवी, पछी सूत्र भणाववां छेवटे अर्थ आपवो. ते बन्नेमां प्रविण थयेलो अने गुरुए सुपात्र जोइने सूत्रार्थ भणाव्या पछी तेने आज्ञा आपे तो पोते कोइपण जातनुं अगसण करवा तैयार थइने नीकळे, ते प्रथम आहार उपि शय्या एम त्रणेनो त्याग करे छे. अने पोते प्रथम रोज भोगवतो तेनाथी पोते मुकाय छे. तेमां जो आचार्य होय तो तेनुं अणसण करवा पहेला शिष्योने तैयार करीने बीजो आचार्य स्थापीने पोते निवृत थइने बार वरसनी (उत्कृष्ट तपस्या) संलेखना वडे अनुभव करीने पोते गच्छनी अणुज्ञा [संमति] लड़ने गच्छने छोडीने अथवा पोते नीमेला आचार्यनी समति लइने अणसण करवा बीजा आचार्यनी पासे जाय छे, तेज प्रमाणे उपाध्याय प्रवर्त्तक स्थविर गणावच्छेदक, अथवा सामान्य साधु हाय ते आचार्यनी रजा ल|इने संलेखना बडे परिकर्म करीने भक्त परिज्ञा विगेरे अणसण न स्वीकारे. तेमां पण, भात्र संलेखना करे कारण के द्रव्य संलेखना जो, एकली होय; तो, दोषनो संभव छे, ते कहे छे: पडिचोइओ य कुविओ, रण्णो जह तिक्ख सीयला आणा । तंबोले य विवेगो घट्टणया जा पसाओ य || २६९ ॥ आचार्य प्रेरणा करेलो के तुं फरी संलेखना कर, एवं कद्देवाथी क्रोधायमान थपला शिष्यने जेम राजानी आज्ञा तीक्ष्ण होय छे पछी शीतळ थाय छे. तेम आचार्ये पण बीजाओना रक्षण माटे प्रथम त्याग करवो जोइए. वळी नागरवेलनुं सडेलं पान जेम बीजां पान बचाववा माटे दूर कर जोइए. तेम कुशिष्यने प्रथम शिक्षा करी पछी ते माफी मागे तो तेना उपर दया लावी राखत्रो For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥७२७॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy