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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७२३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ०- हे गौतम! ज्ञानावरणीय कर्मना उदयथी दर्शनावरणीय कर्म बन्धाय छे, तेथी मिध्यात्वनो उदय थाय छे। अने तेथी आठे कर्म प्रकृति बन्धाय छे. अथवा स्नेह (घी तेल) श्री चीकणा बनेला शरीरवाळाने जेम शरीरमां झीणी रेती चाटे छे. तेवी रीते रागद्वेषनी चीकणासथी जीवोने कर्म चोंटे छे, ए आठे प्रकारना कर्मना आस्रवना निरोधथी अथवा तप वडे अपूर्वकरण क्षपकश्रेणीना अनुक्रमथी अथवा शैलेशी अवस्थामां जे कर्मनो वियोग थाय छे, तेज कर्मक्षय रूप मोक्ष छे. एनुं पुरुषना बधा अर्थोमां प्रधानपं होवाथी प्रारंभेल तलवारनी धारा माफक महाव्रतोना अनुष्ठाननुं मुख्य फळ होवाथी तथा बीजा मतत्राळानी साथे तेनो भेद होवाथी जेवुं मोक्षनुं स्वरुप जिनेश्वरे साचुं बतान्युं छे. ते कहे छे. अथवा प्रथम कर्मना वियोगना उद्देश वडे मोक्षनुं स्वरुप बनायुं. हवे ta योगना उद्देश वडे मोक्षनं स्वरूप बतावे छे. जीवस्स अत्तजणिएहि चैत्र कम्मेहिं पुव्वबद्धस्स । सव्वविवेगो जो तेण तस्स अह इत्तिओ मुक्खो || २६२ || जीव असंख्यात प्रदेशवाळो छे. तेने पोतानी मेळे (पोतानुंज) अनंतुंज्ञान स्वभावथीज छे, तेने पोतानो आत्मा जे मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कपाय योगमा परिणत थवाथी जे कर्मों पोतानाथी बन्धाय छे, ते कर्मने पूर्वे बांधेल होवाथी तेनो प्रवाह अनादि काळनी अपेक्षाथी चालु छे. ते कर्मनो सर्वथा अभाव रूप विवेक करवो, अर्थात् आत्माने तेनाथी निर्लेप करवो, तेज जीवने तेटलोज मोक्ष छे. पण बीजा निर्वाण प्रदीप (बुझाएला दीवा) माफक कल्पेलो मोक्ष नथी, भाव विमोक्ष कह्यो, अने जेने ते मोक्ष थाय छे, तेणे सर्वथा मोक्ष प्राप्त करवा अवश्ये भक्त परिज्ञा विगेरे त्रण मरण (अणसण) मांथी काइपण स्वीकारखं जोइए. अने कार्यमां कारणनो उपचार करवाथी ते मरणज भावविमोक्ष छे. ते बतावे छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥७२३ ॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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