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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५१५७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विळी, जेओ धर्मने भविष्यमां समजशे अने स्वीकारशे, जेम मुनिसुव्रतस्वामी तीर्थंकरनो अने घोडानो दृष्टांत छे, तेवाओने धर्म संभळावाय, अने ते समजेला होय एटले जेओने आगळ कहेतां छद्मस्त साधुने खबर न पडे माटे केवा जीवोने कहेतुं ते कहे छे. विज्ञान प्राप्त पटले हितनी प्राप्ति अने अति छोडवानो विचार करवानुं जेने ज्ञान होय, तथा वधी पर्याप्तिभथी पर्याप्त एटले संज्ञी होत्रा जोइए. आ संबंधमां नागार्जुनीया कहे छे. " आघाइ धम्मं खलु से जीवाणं तं जहा संसारपडिवन्नाणं माणुसभवत्थाणं आरंभ विणईणं दुक्खुवे असुहे गाणं धम्मस्सत्रण गवेसयाणं सुस्सूसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं विष्णाण पत्ताणं" संसारमा रहेला मनुष्य जन्ममां आवेला पण आरंभथी विरमेला दुःखनी उपेक्षा करनारा सुखने वांछनारा होय छतां पण तेओ धर्म सांभळवानी इच्छा करता होय, गुरुनी उपासना करता होय, धर्मना विषयने पुछता होय अने समजवानी शक्तिवाला होय (आ सूत्र सरळ होवाथी टीका नथी परंतु आरंभ त्रिनयनो अर्थ आरंभी दूर होय) तेओने ज्ञानी साधु धर्म बतावे छे, ते कहे छे. 'अहावि' विगेरे एटले विज्ञानने प्राप्त थलाने धर्मने कहेतां कांइ पण निमित्तथी आर्तध्यानवाळा चिलाति पुत्रीनी माफक होय तो पण धर्म पामे, अथवा विषयना अभिलाषथी शालिभद्र माफक प्रमत्त होय छतां पण तेवा कर्मना क्षय उपशमश्री जेवो धर्म स्वीकारे छे, ते कहे छे अथवा आर्त दुःखीओ अने प्रमत्त सुखीओ तेओ पण धर्म पामे छे तो बीजाओनुं भुं कहें ? ( अर्थात् धर्म पामे छे ) अथवा रागद्वेपना उदयथी आर्त तथा विषयोथी प्रमत्त छे. तेओ जैनेतर अथवा गृहस्थ संसारकांतारमा पेठेला केवी रीते तत्वने For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५१७॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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