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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ।। ५९४ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृत्य करवा छतां तेवा संजोगोना अभावेमन परिणाम बदलातां वैधरूपे थाय छे, तेवीरीते कोइने व्रत लोधार्थी अनास्रव थत निर्जरा थवी जोइए, छतां कारण बदलातां ते व्रत बंधनरुपे याय, अने अपरिसूत्र ते बंधनु कारण छतां संजोगो बदलातां बंधरुपे न थाय, माटे एकांत पकड. पण बुद्धि पूर्वक संजोगो तथा मनना परिणाम विचारी अनुमान करयुं, के बोलवू.) अथवा बीजी रीते बतावे छे. जे आसूत्र करे - ते आवो (पच विगेरेमां 'अ' लागे छे, तेज प्रमाणे जे परिस्रव करे ते परिस्रवो (निर्जरक) छे. एनी चोभंगी थाय छे, तेमां मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कषाय योगोवडे जेओ कर्मना अस्रवो (बंधको) छे, तेओज बीजाओना परिस्रवो (निर्जरा करनारा ) हे आ प्रथम भांगामां पडेला बधा संसारी जीवो चार गतिमां भ्रमण करनारा छे. ते दरेकने प्रत्येक क्षणे आसूत्र तथा निर्जरा हे पण जेओ आसूत्र करे तेओ परिसूत्र न करे, आ बीजां भांगो शून्य छे कारणके, बंधनी जोडे निर्जरा (थोडेघणे अंशे) हमेशां चालुन छे. एप्रमाणे जे नावाळा छे, तेओ परिस्ववाळा छे, एटले, तेओ अयोगी केवळी १४ गुणस्थानमा रहेला त्रीजा भागमां हे, अने चोथा भागमां सिद्ध भगवंतो छे, तेओमां अनावपणुं छे, तेम अपरिसवपणुं पण छे, एमा पहेलो अने हेल्लो भांगो सूत्रमा लीवेल छे. अने पहेलो हेल्लो लेवाथी मध्यना वे भांगा साथै रहेवाथी आवीगयला जाणवा. जो, एम छे, तो शुं कर ते कहे छे: उपर कहेला पदो (जेनाथी अर्थ समजाय ते पद छे ते) आसूत्रो विगेरे छे, (अने बीजानो अर्थ समजावा माटे शब्दना प्रयोगथी जे पदो अने अर्थ कहेवा जोग छे) ते मने योग्यरीते समजवावडे समजेलो साधु विचारे के, दुनियाना जीवो आसूत्रद्वार For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५९४ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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