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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आवा० ॥५०६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करेलां कर्मथी साता असाताना उदययी सुख दुःख भोगवे छे. तेथी सत्य छे, अथवा माण भूत जीव अने सत्व ए बधा एक अर्थवाळा शब्दो छे, कारण के तत्व भेद पर्यायोबडे पदार्थने स्वीकारवानो छे, तेथी करीने उपरना बधा शब्दो माणीना पर्यायवाळा के ते जीवोने दंड चावखा विगेरेथी हणवा नहि; तथा बीजा पासे बळजबरी करीने हणावा नहि; तथा नोकर, दास, दासी विगेरे | उपर ममखभावथी तेमनो संग्रह न करवो; तथा शरीर अने मननी पीड़ा उपजावीने परितापत्रा (संतापत्रा ) नहिः तथा जीव प्राण दूर करवावडे तेने अपद्रावण न कर. आवो जिनेश्वरनो कहेलो दुर्गतिने अटकाववाने भुंगळ समान तथा सुगतिनी पगथी समान धर्म छे, अने ते धर्म पुरुषार्थना प्रधानपणाथी विशेषणो बतावे छे. पापना अनुबन्ध रहित शुद्ध छे, पण बौद्ध तथा ब्राह्मणोथी एकेन्द्रियथी पचेन्द्रिय सुधीना जीवोनी हिंसानी अनुमतिने दुःखरूप-कलंक छे. (एटले, ब्राह्मणो यज्ञ करावे छे, अने बौद्धना साधुओ साधु माटे रांधेलं खाय छे, तेथी बधनी अनुमतिनो दोष लागे छे) तेवो दोष जैनधर्ममां नथी. वळी, पांच महाविदेहने आश्रयी ते निरंतर (नित्य) छे, तथा शाश्वत तथा (मोक्ष गति आपवाथी शाश्वत छे अथवा नित्य होवाथी शाश्वत छे, पण एम न थाय; hore ates प्रथम इने पछी न थाय; अने घटना अभाव माफक प्रथम न थइने नित्य थाय; पण आ धर्म तो त्रणे काळमां शाश्वत छे. बळी, आ जीवसमूहने दुःखसागरमा डुबेल जाणीने तेमांथी पारजवा, जंतुनां दुःख जाणनारा एवा केवळी भगवंतोष बताव्यो छे. आ गौतमस्वामीए पोतानी बुद्धिए न कडेलं बताववानुं कारण शिष्योनी मति स्थिर करवा माटे क के:-आ शुद्ध धर्म जीनेश्वरनेा कहेलो छे. आज सूत्रमां कहेला अर्थने नियुक्तिकार मूत्र-स्पर्शक वे गाथावडे कड़े छे:जे जिणवरा अईया, जे संपइ जे अणागए काले । सव्वेत्रि ते अहिंसं, वर्दिसु वदिर्हिति विवदिति ||२२६|| For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ ५०६ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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