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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचाण आहार उबहिधूंआ, इड्डिस् य गारवेसु कइतवियं । एमेव वारसविहे, तर्वमि न हु कइ तत्रे समणो ॥ २२५ आहार उपि पूजा अने आम औषधि विगेरे रिद्धि छे, अने आहार उपधि अने पूजा रिद्धि छे, अर्थात् तेवी रिद्धि पूजा मेळवत्रा ज्ञान भणे, अने चारित्र पाळे, तथा ( तेनुं मळवाथी ) त्रण गारवमा बंधाएलो जे क्रिया करे ते कृत्रिम (बनावटी) कवाय सूत्रम् ॥ ५०३॥ ४ छे, जेवीरीते ज्ञान चरणनुं अनुष्ठान आहार विगेरे माटे करे, ते कृत्रिम होवाथी मोक्ष न आपे, ते प्रमाणे वार प्रकरना बाह्य | ॥ ५०३ ॥ अभ्यंतरतम पण जाणवु, अने तेवो संसारी वासना राखनारने श्रमण भाव न होय, अने असाधुनुं अनुष्ठान गुणवाळु न थाय, | तेथी बासना रहित साधुनुं जे सम्यग्दर्शन पूर्वक तप ज्ञान चरण सफळ हे एम सिद्ध घयुं. माटे सम्यग्दर्शनमा यतना करवी, अने तत्वार्थनुं श्रद्धान करते सम्यग्दर्शन छे, अने आ तत्व सघळां कलंकने दूर करीने जेमणे वा पदार्थोंमां सत्ता व्यापी केवलज्ञानने मेळवेलुं छे, तेवा तीर्थंकरे कहां छे तेने हवे अनुक्रमे आवेला सूत्रानुगममां मूत्र बतावे छे. से बेमि जे अईया जे व पडुपन्ना आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सबे एवमाइख्खन्ति एवं भाति एवं पणविंति एवं परुविंति - सव्वे पाणा सव्वे भृया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता नान अज्जावेयवा न परिधित्तवा न परीयावेयवा न उद्दवेयव्त्रा, एस धम्मे सुद्धे निइए समिच लोयं खेयण्णेहिं पवेइए, तंजहा - उट्ठिएसु वा अणुट्टिएस वा उवट्ठिएसु वा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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