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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४५२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिचमाणा पुनरिति गर्भ ॥ सूत्र. २|| काव्य आ चार प्रकारना कषाय तथा विषयमा विमोक्षमां समर्थ आधार रूप मनुस्य लोकमां संसारी मनुष्यो साथै द्रव्यथी तथा भावथी बने प्रकारे जे पाश (मोहजाळ) छे, तेने सर्वदा छोड; कारण के ते जन समूह काम भोगनी लालसावालो के तथा ते मेळववा | माटे जीव हिंसा विगेरे पापा आरंभे छे. तेथीज सूत्रमां क ले के ते आरंभथी जीववावाळो छे, अने महारंभ परिग्रहथी रचना करीने जीवननो उपाय योजे छे, तथा उभय एटले शरीरना तथा मन संबंधो अथवा आ लोक तथा परलोक संबन्धी (भोगाकांक्षी) छे, वळी ते काम भोगमां रक्त थइने अशुभ कर्मनां उपचय करे छे। अने ते कर्म संचय करीने एक गर्भथी नीकळी बीजा गर्भमां प्रवेश करे छे। अने संसार चक्रवाळ (चक्रावा) मां अरटनी घटमाळ जेम भराय अने उलवाय ते न्याये जुनां कर्म भोगवे, अने फरी | नवां वांधीने भ्रमण करे छे. बळी ते अनिवृत (विना विचारनो) आत्मा केवो (दुष्ट) थाय छे ते कड़े छे. अविसे हासमासज्ज, हंता नंदीसि मन्नई अलं बालस्स संगेण, वेरं वट्ठेइ अप्पणी (सू० ३) काव्य. लज्जा भय विगेरेना निमित्तथा चित्तना विप्लववाळूं जे हास्य (झांसी) छे, तेने मेळवीने इच्छा प्रेमी बनी (क्रीडानी खातर) जीवने हणी [शिकारमां ] आनंद माने छे, अने बीजाओने फसाववा ते महा मोहथी घेरायलो अशुभ विचारवाळो बोले छे के “आ मृग विगेरे पशुओ शीकारने माटे बनाव्यां है, तथा शिकार सुखी पुरुषांनी क्रीडा माटे छे." जेबी रोते जीव हिंसा सिद्ध करे छे. तेम जुठ चोरीमां पण सिद्ध करे के. आ जुटुं बोली ठगनुं के चोरी करवी ए तो बुद्धि बळनुं तथा बहादुरीतुं काम छे विमेरे समजी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥४५२॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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