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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४५० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजो उद्देशो पहेलो उदेशो का पछी बीजो कहे छे. तेनो संबन्ध आ प्रमाणे छे:- पहेला उद्देशामां भाव सुतेला बताव्या; अने अहीं तेओना सुवाथी "दुःख पडवानं " फळ बतावे छे. एम ते बन्नेनो संवन्ध छे. सूत्र अनुगम होवाथी सूत्र कहे छे: जाई च वुद्धिं च इहज्ज ! पासे, भूएहिं जाणे पडिलेह सायं, तम्हाऽतिविजे परमंतिणच्चा, संमती न करेइ पावं ॥१॥ जाति एटले, जन्मथी लइने बाळकुमार-यौवन बूढापा सुश्री वृद्धि छे, ते मनुष्यलोकमां, अथवा संसारमां हमणीज (काळना विलंब बिना) तु जो. तेनो सार आ छे के गुरु शिष्यने कहे छे केः हे भद्र ! हमणां जनमता जीवोने बूढापासुधीमां शरीर मन संबन्धी केवां के दुःखो भोगवाय छे ते तुं विवेक चक्षुथी जो, कनुं छे केःजायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स जंतुणो । तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरइ जाइ मध्पणो ॥ १ ॥ जनमता माणसं जे दुःख छे, ते माणसने मरमी बखते पडतां दुःखथी ते तपेलो होवाथी पूर्वथी जाती पण विसरी गयो के. विरसरसियं रसंनो तो सो जोणीमुहाउ निप्फडइ । माऊए अप्पणोऽविअ वेअणमडलं जणेमाणो ॥२॥ माना चावेला आहारने गर्भमां बैठेलो बाळक परवश थइने खाय छे, अने पोते जनमती वखते पोताने तथा, माताने घणी पीडा आपीने योनिद्वारा बहार नीकळे छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥४५०॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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