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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० १४४८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्योत स्थावर सूक्ष्म साधारण मळी कुल १३ प्रकृति क्षय थतां ८० प्रकृति रहे छे तथा तीर्थकर नाम न होय तो ९२मांथी १३ जतां ७९ छे. तथा आहारकचतुष्टय दूर थतां ९३ मांथी ८९ रहे अने तेमांथी नारकी विगेरे संबंधी १३ दूर थतां ७६ रहे अने तीर्थकर नाम न होय तो ८९ मांधी १ दूर थतां ८८ रहे अने तेमांथी १३ जतां ७५ रहे छे. तेम ८० अथवा ७६ मांथी तीर्थकर केवळी शैलेशी अवस्थामां पहोंचेलाने छेल्लाना पहेला [द्विचरम ] समयमा तीर्थकर नाम कर्म उमेरवाथी वेदात नव कर्म प्रकृति सिवायनी प्रकृति दूर थतां बाकी अंत समये नव प्रकृति सत्तामां रहे छे ते कहे छे. [१] मनुष्य गति [२] पंचेन्द्रिय जाति [३] स [४] बादर [५] पर्याप्तक [६] सुभग [७] आदेय [८] यशकीर्ति [९] तीर्थकर ए नव सिवायनी बाकीनी ७१ अथवा ६७ द्विचरम समयमा नट थाय छे भने तीर्थकर सिवायना केवळीने आठ होय छे एटले तेने तीर्थकर नाम छोडीने बाकीनी आठ प्रकृति सत्तामां होय छे आ तेनुं छेल्लुं स्थान के [त्यार पछी मोक्षमां जतां एक पण प्रकृति नथी] गोत्रनां वे सत्तास्थान छे. उंच नीच गोत्रना सद्भावमां एक सत्तास्थान के तथा अनिकाय अने वायुकायने उंच गोत्र वमतां मलिनभाववाळी अवस्थामा फक्त नीच गोत्रनी सत्ता रहे है, अथवा अयोगी गुणस्थाने द्विचरम समये नीच गोधनी सत्ता दूर थतां उंच गोत्र एकलुं रहे छे एटले वे गोत्रनी अवस्थामां प्रथम सत्ता स्थान छे अने बनेमांथी एक होय ते बीजुं सत्ता स्थान छे [अंतरायनी पांचे प्रकृतिओ साथे दूर थती होवाथी तेनुं जुदुं वर्णन बताच्यं नथी.) आ ममाणे कर्मोनी सत्ता जाणीने साधुए ते सत्ताने दूर करवा मयत्न करवो. वळी बीजुं कहे छे, For Private and Personal Use Only सूत्रम् વડા
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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