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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ६०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे कोइ खीसमूह के तेने मोहरूप जाणीने तेओ पोते पुरुषने न त्यजे, ते पहेलां पोते त्यजवी, आ तीर्येकरे कहेलं छे, ते बतावे छे, 'सुनिना' श्री वर्धमानवामाने केवलज्ञान उत्पन्न थया पछी तेमणे कां छे केः-स्त्रीओ भाव बन्धनरूप छे' एवं पूर्वे प्रकर्षथी क छे, अने आ पण कहुं छे के अतिशय मोहना उदयथी पीडायला ने 'उबाध्यमान' छे पः- शाथी? उः - इन्द्रियोना ग्राम एटले ते ओना धर्ममां फसतां पीडाय त्यारे गच्छयां रहेला होय तो गुरु समजावे. प्रः केवी रीते ? उ-ते कहे छे के तेवो साधु निर्बल निःसार एटले लख्खं मुकुं खानारो बने, अथवा निर्बळ बनीने खाय, अर्थात् घणी तपस्या करवाथी शरीर थाकतां इन्द्रियोना विषयो पण शांत था जाय छे, कारणके आहार ओछो लेवायी बळ ओहूं पड़ जाय छे, ते बतावे छे. अवमोदरी (ओछ्रं खाई ते) करे, अने जो अंतमांत खावा छतां पण मोह शांत न थाय, तो तेथी पण अस्निग्ध आहार बाल चणा विगेरेना ३२ कोळीया मात्र खाय, तेथी पण शांत न धाय, तो कायोत्सर्ग विगेरे काय क्लेशनो तप करे, ते बतावे छे. उर्ध्वस्थाने रहे तथा शीत अथवा उष्णता विगेरेमां (एटले मां नदी किनारे अने उनाळामां तपेली रेतीमां) काउसग्ग करे, तेथी पण शांत न थाय, तो गाम गाम विचरे जो के कारण बिना बिहार निषेध्यो छे, छतां मोह शांत करवा रोज चाली चालीने काया थकवीने मोह दूर करे, एवी बधारे भुं कहे ? अर्थात् जे कारणथी विषय इच्छा दूर थाय, ते कृत्य करे अने छेवटे आहार पण त्याग करे, अतिपात करे (उंवेथी पढीने मरे) उद्दबन्धन करे (गळे फांसो खाय) पण स्त्रीयां मन न करे, (अपि समुच्चयना अर्थमा छे) स्त्रीमां जे मन गयुं, ते त्यजे, तेना परित्यागमां वे प्रकारना कामो (इच्छा काम मदन काम) पण दूरथी त्यजेला जामवा. कं छे के काम जानामि ते रूपं, सकल्पात् किल जायसे । न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ६०४ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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