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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आधा. सूत्रम् रथइ जाय छे, अने कोपायमान थइ बीमा सापे लडे; तेथी एवा अनेक दोषो जे गुरुथी जुदा पड्या होय; सिद्धांतनो परमार्थ न जाण्यो होय; तो तेने रक्षकना अभावे दोपो थाय; पण, गुरु साथे होय; तो, लडनारने उपदेश आपे के:॥५९७॥ आक्रुष्टेन मतिमता तत्वार्थान्वेषणे मतिः कार्या। यदि सत्यं कः कोपः स्यादनृतं किं नु कोपेन ॥१॥1॥५९७॥ बुद्धिमान पुरुषे क्रोध करतां विचार करवोः अने तत्त्व शोधवामां बुद्धि जोडवी. जो, ते कहेनारनुं बोलवू सत्य होय; वो, कोप। केम करचो ? अने तेनुं बोलवू जुलु होय; तो, तारे कोप शुं काम करयो ? (कारणके के ते तने लागतुं नयी.) ___ अपकारिणि कोपश्चेत्, कोपे कोपः कथं न ते ! धमार्थकाममोक्षाणां प्रसह्य परिपाथिनि ॥ २ ॥ जो तारे बगाडनार उपरज कोप करवो होग, तो ते कोप उपरज तारो कोप केम थतो नथी कारण के धर्म अर्थ काम अने मोक्ष आ चारेने अतिशय विघ्नकारक आ कोप छे, (कोपवालो माणस चारेने भूली जाय, अने अनर्थ करे छे) विगेरे प्रश्न; क्या कारणे वचनथी पण ठपको आपतां आ लोक अने परलोकर्नु बगाडनार स्वपरने वाधा करनार क्रोधने लोको पकडी राखे छे? उ:-जेने 8 उन्नत (घj) मान के, अथवा जे पोताना आत्माने उंचो माने छे, तेवो माणस पवळ मोडनीय कर्मना उदयथी अथवा अज्ञानना उदयथी। मुंझाय छे एटले कार्य अकार्यना विचारना विवेकथी शून्य याय छे, तेवा सुंझायलाने कोइए शीखामण आपवा कांइ कबु होय, अथवा मिथ्यावीए वाणीथी तिरस्कार को होय त्यारे, पोते जाति विगेरे कोड़पण जातनो मद उत्पन्न यतां मानरूप मेरुपर्वत उपर चढीने & कोपायमान थाय छे, के हु आवो ! तेनो पण आ तिरस्कार करे छे, धिकार के मारी उंच जातिने ! धिक छे मारा पुरुषार्थने ! ॐॐॐॐॐAS 4: 5A For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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