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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५८३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिअंत लेवाथी मध्यनुं अवश्य आवी जाय छे. 'किं च' वळी 'सदा' सर्वकाळ १८००० भेदवाले शीलव्रत अथवा संयम पाळे, अथवा शीळ चार मकारनुं छे. महात्रतने सारीरीते पाळवां, ऋण गुप्तिओ पाळवी. पांच इन्द्रियोनुं दमन करं; कपायनो निग्रह करवो. आ प्रमाणे चार प्रकार शीळ विचारीने मोक्षना अंगपणे पालन करजे; पण एक नीमेष ( आंखने फरकवानो काळ ) मात्र पण ममादिवश न थइश मः-क्यो माणस शीळनो संभेक्षक थाय ? ते कहे छे:जे शीळनां रक्षणनुं फळ (मोक्षगमन) छे, तथा कुशील सेववानुं फळ नरकगमन विगेरे आगमथी जाणे छे, ते गीतार्थसाधु 'अकाम' - इच्छा मदन काम (संसारी वासना ) रहित बने, तथा तेने झंझा ( माया अथवा लोभ इच्छा ) न होय, तेथी अझंझ कहेवाय, अने काम तथा झंझानो प्रतिषेध करवाथी मोहनीयना उदयनो प्रतिषेत्र कर्यो, अने तेना प्रतिषेधथी शीलवाळो बने, एनो भावार्थ आ छे, के धर्म सांभळीने अकाम (सुशील) थाय, अने अझ थवाथी अमायी धाय, आ बन्ने गुणथी उत्तर गुण लीधा, अने ते उपलक्षणथी मूळगुण (महात्रत) पण लीघां, तेथी अहिंसक सत्यवादी पण थाय, विगेरे समजी ले. शंका- जीवथी शरीर जुर्दु छे, आवी भावना भावनार तथा पोतानुं बळ वीर्य गोपव्या विना धर्म करनार १८००० शीलींग धारण करनारने तथा उपदेशमां कहेवा मुजब वर्त्तया छतां पण मारो सर्वथा कर्ममल दूर नथी थयो, तेथी तमे तेनुं असाधारण कारण कहो ! के जेना बडे हुं शीघ्र संपूर्ण कर्ममल कलंकथी रहित थाउं, हु आपना उपदेशयी सिंह साधे पण युद्ध करीश, कारण के कर्म क्षय करवा माठे हूं तैयार थयो छु, तेथी कंइ पण मने अशक्य नथी. तेनो उत्तर सूत्रकार आपे छे, इन्द्रिय तथा मनरूप औदारिक शरीरवडे तुं युद्ध कर, कारण के ते विषयसुखनो पिपासु वनी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ५८३ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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