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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbafrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie परिवार. तेम वेषधारीने नोकर-चाकर अने चेला-चेलीनो व्यवसाय आ ममत्वभावे परिग्रह छे.) आचा० IPL अथवा आ छ जीवनिकायमांज अथवा विषयभूत [वस्तुरूप थोडं विगेरे जे द्रव्य कय तेमांमूळ करतां परिग्रहधारी बने छ. / सूत्रम् तेज प्रमाणे अविरत [संसारी रह्या छतां हुँ विरत छ, ए, बोलतो अल्प-परिग्रह राखबाथी पण परिग्रहधारी बने छे. एज प्रमाणे ॥५७५॥ बीजां ब्रतोयां पण जाणवू, कारणके तेणे आस्रवोर्नु निवारण न करवाथी एक देश (थोडो) अपराध करवाथी पण संपूर्ण अपराध-11 1॥५७५॥ पणानो संभव थाय छे. | शंका-जो, आ प्रमाणे अल्प-परिग्रह पण राखवाथी परिग्रहपणु थाय छे. तो, हाधमां भोजन करनारा दिगम्बर-विस्तरहित] तथा सरजस्क बोटिक विगेरे जे छे, तेओ अपरिग्रहवाळा मुनि यशे. कारणके, तेमने तेवा थोडा परिग्रहनो पण अभाव छे. ____ आचार्यतुं समाधान-तेम नथी; कारणके, 'परिग्रहोनो अभाव छे.' ए हेतु अप्रसिद्ध [जूठो] के. सांभळो सरजस्कने अस्थि विगेरेनो परिग्रह छे, अने बोटिकोने पीच्छी विगेरेनो परिग्रह छे. आ (बाह्य परिग्रह छे,) तथा अंदरनो परिग्रह पण छे, कारणके, शरीरधारी है, तथा आहार विगेरे परिग्रह तेमने विद्यमान छे. ___धर्मने टेको आपवारूप ते होवाथी निर्दोष छे एम कद्देशो; तो, अमने पण ते समानज छे. तो पछी, दिगम्बर (नग्नपणाना)। P आबहनो कदाग्रह शा माटे जोइए ! इके, जे अल्प (थोडो) विगेरे पण परिग्रह राखे छे, अने अपरिग्रहपणानो अभिमान राखे छे, 18/ तेमनो आहार शरीर विगेरे मोटा अनर्थने माटे पाय , ते बतावे छे 'एत देव' ए अल्पबहुपणा विगेरेना परिग्रहवढे केटलाकने परिग्रहपणुं नरकादि गमनना हेतुपणाथी अथवा वधाने तेनो अविश्वाम यतो दोवायी महाभयरूप थाय , कारणके आ प्रकृति & P3वला . For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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