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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 कूळ आहारना भोजनथी धृति उपष्टभ विगेरेमा औदारिकभरीर वर्गणाना परमाणुना उपचपथी चय तथा घटवाथी अपचय छे एवा8 सूत्रम् &धर्मवाळ होवाथी अयापचयिक छ, एयीज विविध परिणामवाळु छे, तेथी ते विपरिणाम धर्मवाळू छे, जो आवी रीते शरीर नाश॥५७३॥ त छे, तो ते शरीर उपर शुं अनुबन्ध (पमत) होय ? अने कइ रीते मूर्ण होय? तेथी आ शरीरवडे कुशल (धर्म) अनुष्ठान विना बीजी कोई पण रीते सफलता नथी ते कहे छ:__पासह आ रुपसंधि (योग्य अवसर) ने जुओ ! के नाशवंत धर्मथी घेरायलं आ औदारिक शरीर छे, तेमां पांचे इन्द्रियोनी संपूर्ण शक्तिना लाभनो अवसर छे, अने ते देखीने जुदा जुदा रोगोथी उत्पन्न ययेला स्पर्शोना दुःखनो उत्तम साधु सहन करे, आM प्रमाणे (हृदयचक्षुथी) देखनारने | याये, ते कहे छ समुप्पेह माणस इकाययणरयस्स इह विप्प मुक्कस्स नस्थि मग्गे विरयम्स तिबेमि (सू. १४८) सारी रीते देखाताने आ भेदुर धर्मवाळ शरीर छे, एवं विचारतो तेने मार्ग नथी. अर्थात् चार गतिमा भ्रमण नथी. ते कहे Kछे. एटले आ आत्मने बधा पापारंभोथी मर्यादामां लेबाय (कबजे रखाय) अथवा कुशल (धर्म) अनुष्ठानमा उग्रमवाळो कराय, तो ते आयतन कहेवाय अने ते शानदर्शन चारित्र ए त्रणमा एक रुपे होय तो ते एकायतन छे, अने तेमां रमणता करे तो आत्मा 8 अकायतनरत छे, तेवा निस्पृही ज्ञानी मुनि 'इह' आ भरीर अथवा आ जन्ममा विविध उत्तम भावनाभोवडे शरीरना अनुसन्धथी मुकाय ते विममुक्त छे, तेने नरकतिर्यच मनुष्य गतिमा भ्रमण नथी, तेमज वर्तमानकाळ नताववाथी भविष्यमा पण भ्रमण नथील For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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