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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५६४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एनाथी उलदुं अप्रशस्त चरण ते ग्रहस्थ भने अन्यदर्शीनीओनुं संसारी वर्तन छे. तेथी आ प्रमाणे द्रव्य विगेरे चार प्रकार तुं चरण बतावीने वर्तमानमां उपयोगीपणे साधुनो प्रशस्त भाव चार प्रश्न द्वाराए नियुक्तिकार बतावे छे. लोगे चउविहंमी, समणस्स चउविहो कहं चारो ? होई विई अहिगारो, विसेसओ खित्तकालेसुं ॥२४८॥ चार प्रकारना द्रव्य क्षेत्र काळ अने भावरूप लोकमां श्रम सहेनार ते श्रमण (यति) नो केवीरीतनो द्रव्यादि चार प्रकारनो चार छे ? उत्तर - अहीं धृति (धैर्यता ) नो अधिकार छे, एटले चार प्रकारे धैर्यता राखवी. -:- चार प्रकारनी धैर्यता -: द्रव्ययी धैर्यता — एटले अभ्स ( रस रहित) तथा विरस ते तुच्छ तथा लुरु विगेरे भोजन मळे, तो पण तेमां धैर्यता राखवी. क्षेत्र धैर्यता -- एटले कुतीर्थिके लोकोने पोताना रागी चनाच्या होय, अथवा कुदरतीज लोको अभद्रक होय (तो साधुनुं बहु मान न करे तेथी) साधुए उद्वेग न करवो, काळ धैर्यता ---ते दुकाळ विगेरे मुश्केलीना वखतमां जेतुं भोजन विगेरे मळे, तेमां संतोष राखवो. भाव धैर्यता - ते कोइ आक्रोश करे हांसी करे अपमान करे, तोपण क्रोधायमान न यनुं, पण विशेष करीने तो क्षेत्रकाळमां testj होय त्यां वधारे धैर्यता राखवानी छे, कारण के प्राये तेना निमित्तेज द्रव्य अने भात्रमां अधैर्यता थाय छे. हवे फरीथी द्रव्यादिकना भांगायी साधुनो चार कहे छे. For Private and Personal Use Only X सूत्रम ||५६४ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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