SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व छे, तथा ते द्रव्यथी भावथी एम वे भेदे छे, तेमां द्रव्यथी ने गृहस्थ पाखंडी विगेरेनु विषय कषाय विगेरे माटे एकलातुं फरखं धाय, अने भावधी अप्रशस्त न होय कारण के राग द्वेषना अभावथी ते एक चर्या होय छे, अने रागद्वेषना अभावमा अप्रशस्त एक चर्या ते द्रव्यथी प्रतिमा धारण करेला गच्छपांथी नीकळेला जिनकल्पीने संघ विगेरेना कार्य माटे एकला जवू पडे ते छे, अने भावथीम सुत्रम | तो प्रशस्त एक चर्या राग द्वेषना विरहथी थाय छे, तेमां द्रव्यथी तथा भावथी एकचर्या ते केवळ ज्ञान उत्पन्न न यथेला तीर्थक रोए संयम लीधा पछीनो छद्मस्थ काल छे, बाकीना वधा चार भांगामां आवे छे, तेमा प्रथम अप्रशस्त 'द्रव्य एक चर्यानु' दृष्टांत * कहे छे:-पूर्वे देशमां धान्य पूरक नामना संनिवेशमा जुवान वयमां देवकुमार जेवा रुपवान तापसे गामना नीकळवाना रस्ता उपर छठनो तप शरु कर्यो, बीजा तापसे पासेना गाममा पर्वतनी गुफामां अठम तप करीमे अतापना लेवा लाग्यो पछी गाममाथी नीक-18 ळतां ते तापसने ठंड ताप सहेतो देखीने लोकोए तेना गुणोधी रंजीत थइने आहार विगेरेथी तेनुं सन्मान कयु, लोकोर पूजतां तथा सत्कार करतां ते तपासे लोकोने कयु के माराधी पण बीजो पहाडनी गुफाचाळो तापस धारे कष्ट सहन करे छे, तेथी लोकोए | तेने वारंवार स्तुति करतो जोइ तेमणे ते वीजा तापसनी पण पूजा करी, अने पारकाना गुणो गावा दुष्कर छे, एम जाणीने तेनो पण सत्कार कर्यो. आ प्रमाणे बन्ने भाइए एकला रहीने पूजावा माटे तप कर्यो, तेथी ते अभशस्त छे. आ प्रमाणे बीजा पण एक चर्याना दृष्टांतो यथा संभव विचारी छेवा. आ प्रमाणे सूत्रार्थ कहेतां स्त्र स्पर्शिक नियुक्तिवडे नियुक्तिकार कहे छे. • चारो चरीया चरणं, एगहुं वंजणं तहिं छक्क। दव्यं तु दारु संकम जल थल चाराइयं बहहा ॥२४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy