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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आपा० ॥ ५५६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घातिकर्मो क्षय धवाथी केवळी ते संसारना मध्यमां न गणाय, तेम दूर पण नथी, कारणके चार अधातिकर्म बाकी छे, आ ( केवळीने आश्रयी छे) जेणे ग्रंथी भेद करीने दुष्प्राप्य एवं सम्यक्त्व प्राप्त कर्यु अने संसारना आरातीय तीरे (मोक्षमां जवानी तैयारीवाळो ) केवा अध्यवसायवाळो होय छे, ते कहे छेः से पासइ फुसियमवि कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरियं, एवं बालस्स जीवियं मंदस्स अवियणाओ, कूराई कम्माई बाले पकुवमाणे तेण दुक्खेण मृढे विप्परिआसमुवेइ, मोहेण गम मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो [ सू० १४२ ] जेनुं मिथ्यात पडल (पडदो) दूर थयेल छे, अने सम्पतवना प्रभावथी संसारनी असारता जाणेली छे, (दृश्य धातुनो अर्थ प्राप्तिना अर्थमा छे) ते जाणे छे के, कुशना अग्रभागे रहेला पाणीना बिंदु माफक संसारी (बाल) जीवनुं आयुष्य छे, अने ते पाणीना बिंदु उपर उपरथी आवता पाणीना बीजा बिंदुयी प्रेरणा थतां वायुना झपाटाथी पडतां वार न लागे, तेम आ बालजीवनुं जीवित छे, तेनुं क्षणमात्र जीवित जाणीने, तत्व जाणनारो डाह्यो साधु तेमां मोह न करे, माटे बाळ शब्द लीधो ले, पटले बाळ ते अज्ञानी छे, ते अज्ञानपणाथी जीवितने बहु माने छे, तेथी बाळ छे, मंद छे, सद्असत्ना विवेकथी शून्य छे, तेथी बुद्धिहीन होवाथीज परने जाणतो नथी, अने परमार्थने न जाणवाथीज जीवितने बहु माने के अने परमार्थ न जाणवार्थ ते शुं करे छे, ते कहे छे, 'कुरागि' विगेरे ते निर्दयतानां कृत्यों करे छे, हिंसा जूठ विगेरे जे बीजा लोकोने आश्वर्य पमाडे तेवां महान पाप अथवा अढारे For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५५६॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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