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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० ॥५५३॥ | अंशे बे पदार्थ जुदा पडे. जो, जुदा न पडे तो, एकज कहेवाय ते बंध न कहेचाय. माटे, जुदा पडे; ते मोक्षजीवने कर्मरूपी-अजीव / सूत्रम् M पदार्थ पुगळ स्कन्धरुपे कई अंशे मळेलो ते सर्वथा जुदो पडे ते संपूर्ण मोक्ष छे, अने थोडे अंशे जुदो पदे; ते देशमोक्ष छे.) हवे, मोक्ष जो होय; पण, ते प्राप्त करवानो उपाय न होय; तो, माणसो | करे? तेथी ते बतावे छे. 'यतना' एटले, रागद्वेष छोडवामा ॥५५३॥ यत्न करवो; ते प्रथम लक्षणरूप-संगम पण विद्यमान छे. तेथी, आ प्रमाणे जीव अने परमपद विद्यमान छे, ते (मोक्षमा) शंका दूर करीने सानादिक-सारपदने मेळववाह प्रयत्न करयो, तेनाथी पण अपर अपर (चढतो) सार तथा श्रेष्ठगति छे. ए, बतावी उपक्षेप कहे छे: लोगस्स उ को सारो!, तस्स य सारस्स को हवइ सारो?। तस्स य सारो सारं, जइ जाणसि पुच्छिओ साह ॥ २४४॥ चउद राजममाणनो जे लोक छ, तेनो सार छे ? ते सारनो भु सार ? ते सारनो शुं सार जो ए तमे जाणता हो; तो, हु 18/ & पुर्छ माटे कहो. लोगस्स सार धम्मो, धम्मपि य नाणसारियं विति। नाणं संजमसारं, संजमसारं च निवाणं ॥ २४५॥ ___बधा लोकनो सार धर्म के, धर्मनो सार शान छे, ज्ञाननो सार संयम छ, संयमनो सार निर्वाण छे. आ प्रमाणे नामनिक्षेपो कहो. हवे, सूत्रानुगममां मूत्र कहे जोइए. ते कई छे: आर्वतो केयावंती लोयंसी विप्परामसंति अद्याप अणहाए, एएसु चेव विप्परामुसंति, गुरु + For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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