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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा० 18/गति छे. तथा तेमां कोई जातनी बाधा नथी, माटे ते सर्वोत्कृष्ट छ, अने तेनां साधनो प्रकृत (चालु) उपकारक मान दर्शन संयम, 181 अने तप छे ते भावसार सिद्धिफल मेळवदा तेनां साधन ज्ञानादिक छे तेमां आपणु कार्य के. एटले शानदर्शन चारित्ररुष-भाव सूत्रम् ॥५५॥ सारवडे अहीं अधिकार छे. तेथी ते ज्ञान विगेरे जे सिद्धि (मोक्ष) ना उपायो छे, तेनी भावसारता बतावे छे. ॥५५१॥ लोगंमि कुसमएसु य काम परिग्गहकुमग्गलम्गेसुं। सारो हु नाणदेसणतवचरणगुणा हियट्टाए । २४२॥ गृहस्थ लोकमां खराब (संमारी) सिद्धान्त छे, ते कामवासनाना आग्रहथी कुमार्ग छे, तेमां रक्त वनेला होवाथी काम परिग्रहनो आग्रही बनी गृहस्थ भावने तेओ प्रशंसे छे अने बोले छे केः गृहाश्रमसमो धम्मों, न भूतो न भविष्यति। पालयन्ति नराः शूराः क्लीवा पापण्डमाश्रिताः ॥ १॥ गृहस्थम जेवो धर्म थयो नथी, थवानो नथी, तेनु पालन शूर पुरुषो करे छे, पण कलीच (सत्व विनाना) पुरुषो तेने छोडी ४ बावा (साधु) बनी जाय छे, कारण के गृहस्थाश्रमने (गृहाश्रमने) आधारे बधा त्यागीओ रहे थे, तेवू सांभळीने (ओछी टू बुद्धिवाळा ) महामोहथी मूढ बनीने इच्छा मदन काममा प्रवर्ते छे, तेज प्रमाणे खरा साधु सिवायना वेशधारीओ पण जेमणे इन्द्रि योनी कुचेष्टा रोकी नथी तेओ पण ते वे प्रकारनी कामवासनाने वखाणे छे, एयी लोकमां साररूप ज्ञानदर्शन तप चारित्रना गुणो, 18 उत्तम सुखवाळी श्रेष्ट सिद्धि मेळववा माटे आदर करवा योग्य सार छे, कारण के ते हितसिद्धि आफ्नार छे, जो ज्ञानदर्शन तप 8 13 चारित्रना गुणो हित माटे सार छे, तो शृं करवं ते कहे छे: CA For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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