SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kcbatrth.org 14-1 आचा Ce: ॥५३९॥ चिन्हरूप विष्टा अने पिशावने मेळवी विलेपन कर, तो शांति थशे. अने से प्रमाणे पुत्रे न छुटके कयु त्यारे तेने शांति थइ, अने पिता मरीने सातमी नरकमा गयो. आ दृष्टांतथी पापी पोते दुःख भोगवे छे तेम तेनी हायपीट जोइ बीजां सगां पण दुःख भोगवे ले ते बतायु) गुरु कहे छे:-हे शिष्य ! जेभो क्रोध विगेरे नथी करता; ते केवां होय छे ? ते सांभळ. 'जे निव्वुडा' विगेरे, पण || जेओ तीर्थकरना बोधवी निर्मळ हृदयवाळा छे, तेो विषय अने कपाय अग्रिना बुझावाथी निवृत्त (नांत) ययेलां पापकर्ममांग ॥५३९॥ | निदान (वासना) रहित बनेला छे. तेश्रो परमसुखना स्थानने पामेला छे. अर्थात् औपत्रमिक सुखने भजनारा होचायी प्रसिद्ध छे. प्रश्न:--तेथी शुं समजबुं ? उत्तरः-तम्हा विगेरे. ते रागद्वेषधी घेरायेलो दुःखी थाय छे, तेथी अति विद्वान् के जेणे, शास्त्रोनो परमार्थ जाण्यो छे, तेवाए क्रोधानिवडे आत्माने वाळवो नहि. अर्थात् क्रोधादि आवतां तेने शांत (दर) कर, ए प्रमाणे मुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे. :: चोथो उद्देशो त्रीजो उद्देशो कह्यो, तेनो आ कहेवाता चोथा उद्देशा साथे आप्रमाणे संबंध छ; गया उद्देशामां निरवद्य तप वताव्यो, अने ते संपूर्ण रीते 61 सारा संयममा रहेला सुनिने होय छे, तेथी संयम बतावचा चोथो उद्देशो कद्दे छे, तेना आवा संबंधी आवेला चोथा उद्देशानुं आप्रथममूत्र छे. आवीलए पवीलए निप्पीलए जहिता पुवसंजोगं हिच्चा उवसमं, तम्हा अविमणे वीरे, सारए For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy