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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५३३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'दशमां विध्याल अनंतानुबंधीथी संज्वलन सुधी ४ क्रोधनी चौकडी ए प्रमाणे माननी चोकडी पण होय ते प्रमाणे कपटनी चोकडी होय, तथा लोभनी चोकडी होय एटले कोइ पण चोकडीनी चार होय, ते मळी पांच थइ. छट्टो कोइ पण एक वेद होय, हास्य रति अथवा अरति शोकनुं जोडलं होय भय तथा जुगुप्सा मळी कुल १० थइ. उपरनी दशामांथी कोइ जीवने भय के जुगुप्सामाथी एक न होय तो नत्र, अने बन्ने न होय तो आठ, अनंतानुबंधीनी एक दूर थतां ७ रही, मिध्यात्वना अभावमां छ रही, अप्रत्याख्याननी उदयना अभावमा ५, प्रत्याख्यान आवरणना उदयना अभावे ४ हास्यरतिनुं जोडलं कोइ पण न होय तो २ अने वेदना अभावमां फक्त संज्वळून एकनो उदय रह्यो. आयुष्यनुं पण एकज उदयस्थान के कारणके चारमांनुं कोइ पण एक होय, नाम कर्मना उदयनां १२ स्थान छे. २०, २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ९, ८ तेमां संसारमा रहेला सयोगी तेर गुणस्थान सुधीना जीवोने नामकर्मना दश उदयस्थान छे. अने अयोगि गुणस्थानवाळाने छेवटना बेज छे. अटों बार ध्रुव उदयकर्म प्रकृति प्रथम बतावे छे. तेजस ' कार्मण' शरीर वे, वर्णगध रस स्पर्श ४ चोकहुं अगुरुलघु, एक स्थिर, एक अस्थिर, एक शुभ, एक अशुभ, एक निर्माण, कुल वार तेमां वीस तीर्थकर केवळी ज्यारे समुद्घात करे त्यारे कार्मण शरीरयोगीने हॉय छे. ते कहे छे, मनुष्यगति एक पचेन्द्रियजातिओ त्रस एक बादर एक पर्याप्त एक सुभग एक आदेय एक यशकीर्ति एक त्रणे उपर कहेली ध्रुवउदयनी बार मळी कुल २० थइ. अने एकवीसथी एकत्रीस सुधीनां उदयस्थानो जीव गुणस्थानना भेदथी अनेक भेदवाळां होय छे. ते ग्रंथ वधी जवाना भयथी बधा अहीं कहेता नथी, पण जाणवा माटे एकेक कहे छे. प्रथम एकवीसनो एक कहे छे, गति एक, जाति आनुपूर्वी एक श्रम एक बादर एक पर्याप्त अथवा अपर्याप्त एक कोइ एक सुभग एक अथवा दुर्भग आदेव अथवा एक अनादेव यशकीर्ति अथवा For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५३३॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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