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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३१५ ते केवीरीते कर्मक्षय थाय ते बतावे छे. www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरई आउट्टे से मेहावी, खणंसि मुक्के (सू. ७२ ) पूर्वसूत्र साथै एनो संबंध कहेवो जोइए ते बतावे छे. ७१ मा सूत्रमां कां:- आत्मार्थ ते संयम छे. तेने सारी रीते पाळेते संयममां कदाचित अरति थाय; तेथी उपदेश आपे छे के, अरति न करवी; ते आ ७२ मां सूत्रमां बतान्युं छे. तथा परंपर सूत्र संबंध आ प्रमाणे छे. “खणं जाणाहि पंडिए." एटले चारित्रनो क्षण (अवसर) मेळवीने अरति न करे; तथा प्रथमना सूत्र साथ आ संबंध छे. "मुअं मे" इत्यादि में भगवान पासे आ सांभळ्युं छे के, “अरई” इत्यादिके साधु अरति न करे. आ अरति साधुने पांच प्रकारना आचारमां मोहना उदद्यथी कषाय, तथा प्रेमथी एटले मातापिता स्त्री विगेरेमां स्नेह थतां थाय छे, ते समये संसारनो स्वभाव जाणेला बुद्धिमान साधुए से मोहने दूर करवो. जो तेम करे तो चारित्र पळे नहिं तो शुं थाय ? ते कहे छे. जेम, कंडरीकने दुःख थर्युः तेम, संयममां अरति करनारने नरकगमन छे, तथा विषयवांच्छामां रति दूर करीने साधुनी दश प्रकारनी गुरुनी आज्ञामां रहेवारूप विगेरे समाचारीमां ते कंडरिकना भाइ पुंडरिकनी माफक रतिथाय; तो संयममां अरति न थाय तेज कहे छे: साधु संयममां रति करे ( आनंद माने) जेथी तेने कोइपण प्रकारनी बाधा ( अडचण न आवे; तथा आलोकमां पण संयम शिवाय बीजं सुख छे, एवं मनमां पण न लावे. कयूं छे केः “क्षितितलशयनं वा प्रान्तभैक्षाशनं वा, सहजपरिभवो वा नीचदुर्भाषितं वा, महति फलविशेषे नित्य For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३१५॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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