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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२९७॥ आ कान विगेरेनो आत्मानीसाथे संबंधथतां; जे ज्ञान थाय छे, ते ज्ञान उमर वृद्ध थतां ओछु थाय छे, ते हवे बतावे छे. मूळसूत्रमा कयुं छेकेःआचा "अभिकतं घ" विगेरे एटले उपर बताव्या प्रमाणे बुढापामां शक्ति ओछी थइ जाय छे. अथवा आखा मूत्रनो आ प्रमाणे अर्थ लेवो के:॥२९७॥ कान विगेरे विज्ञानथी कमी थयेल कर्णभूत इन्द्रियो छतांपण अभिकतं. विगेरेनो अर्थ आ थाय छे केः-जेम जेम ऊमर वीते; ४ तेम तेम बुद्धि-शक्ति ओछी थाय; तेमां प्राणीओने काळेकरेली शरीरनी अवस्था जेमां यौवन विगेरे वय (उमर) छे. तेने जरा अRथवा मृत्युना सामे जवान छे. कारण के अहीआं शरीरनी चार अवस्थाओ छे, (१) कुमार (२) योवन (३) मध्यम (४) वृद्धत्व छे, एम जाणवू. ते शास्त्रमा कयुं छे. के8 "प्रथमे वयसि नाधीतं, द्वितीए नार्जितं धनम्। तृतीए न तपस्तप्त, चतुर्थे किं करिष्यति? ॥१॥ पहेली वयमा विद्या न भण्यो, बीजी वयमा धन न मेळव्यु. त्रीजीमां तप न को. (एवो आळसु माणस इन्द्रियो थाकता. चोथी | अवस्थामां शुं करवानो के !) तेथी पहेली बे अवस्था जतां वृद्धावस्थाना सामे वय जाय छे, अथवा बीजीरीते त्रण अवस्थाओ छे. (१) कुकार (२) योवन ६ (३) वृद्धावस्था छे का छे के “पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने। पुत्राश्च स्थाविरे भावे, न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति ॥१॥" MARACANCIENCCCCCCC-% For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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