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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२८३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीए पोताना पति चाणाक्यने बात करी. तेथी धन लेवा नंदराजा पासे गयो त्यां धनने बदले अपमान मळ्युं तेथी चाणाक्ये नंदराजाना कुलनो नाश कर्यो . ) कोइ विचारे छे के मारे पुत्रो जीवता नथी. ते जीवाडवा बीजा आरंभो करे छे, कोइ प्राणी मारी दीकरी दुःखी छे, एवा राग अथवा द्वेषथी वेला जेवो बनी परमार्थने न जाणतो एवां एवां कृत्यों करे छे के जेनावडे आलोक परलोकमां नवां दुःखोने भोगवे छे. जेमके " जरासंध” नामनो प्रतिवासुदेव. पोताना जमाइ कंसना मरणथी पोताना लश्करना अहंकारथी कंसने मारनार " वासुदेव" (कृष्ण) ना उपर कोप करीने तेना पाछळ जइने लडाइ करतां सेना साथे नाश पाम्यो. कोइ तो मारी पुत्रवधु जीवती नथी, तेथी आरंभ विगेरेमां वर्ते छे. कोइ मित्र माटे, कोइ स्वजन. (काका, दिकरा के साळा) माटे क्लेश करे छे. के ए मारा वारंवार परिचयमां आवेला छे. अथवा पूर्वे मारा माता पिता उपकारी हता अने पाछळथी साळा विगेरे उपकारी हता ते अत्यारे दुःखी छे. एम प्राणीओ कोइना कंपण निमित्ते शोक करे छे. अथवा जुदां जुदां शोभायमान अथवा घणा हाथी घोडा रथ, आसन, पलंग विगेरे जे उपकरणो छे तेनाथी बमणा, तमणा विगेरे वधारे राखीने बदले छे. तथा भोजन (लाडु विगेरे) आच्छादन (पट्ट युगम विगेरे वख मने मळशे, अथवा मारां नाश थयां एम रागद्वेष करे छे आ प्रमाणे प्राणीओ चेतन वस्तुमां गृध्ध बनीने पूर्वे कला माता पिताविगेरेना रागथी आखी जींदगी सूधी प्रमादि रहे छे एटले ए मारां छे. अथवा हुं आ परिवारनो रक्षक छु, पोषण करनारो छं एम ममता करीने मोहीत मनवालो थाय छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ २८३ ॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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