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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandir सुत्रम् ॥२६॥ मणवयणकायको माइल्लो गारवेहिं पडिबद्धो । असुभं बंधइ नामं तप्पडिपक्खेहि सुभनामं ॥९॥ आचा० मन वचन कायाथी वक्र होय, अहंकारमा चढेलो होय. आ दुर्गुणोथी अशुभनामकर्म बांधे छे, अने तेनाथी उलटो एटले मन वचन ६ कायाथी सरळ होय, निष्कपट होय; एवा सद्गुणवाळो शुभनाभ कर्म बांधे छे. ॥२६८॥ अरिहंतादिसु भत्तो सुतरुई पयणुमाण गुणपेही । बन्धइ उच्चागोयं विवरीए बन्धई इयरं ॥१०॥ जिनेश्वर विगेरे पंच परमेष्ठिनो भक्त होय; सूत्र भणवानी रुचीवाळो होय; अहंकारी न होय; गुणोनो रागी होय; ते उंच गोत्र बांधे र छे. अने तेनाथी उलटा गुण ( दुर्गुणवाळो ) नीच गोत्र बांधे छे. पाणवहादीसु रतो, जिणपूयामोक्खमग्गविग्घयरो। अजेइ अंतरायं, ण लहइ जेणिच्छयं लाभं ॥११॥ प्राणवध (जीवहिंसा ) विगेरे पापमां रक्त जिनेश्वरनी पूजा तथा मोक्षमार्गनां जे कृत्य तेमां विघ्न करनारो होय; ते अंतराय & कर्म बांधे छे, अने ते कर्मना प्रतापथी इच्छित वस्तु मेळवतो नथी. स्थितिबन्ध-मूळ अने उत्तर प्रकृतिओनो उत्कृष्ट अने जघन्य (सौथी थोडो) एवा चे भेद छे, तेमा उत्कृष्टथी मूळ प्रकृति | ४ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय वेदनीय अंतराय ए चार कर्मनी ३३ कोडाकोडी सागरोपम स्थिति छे. अने जेटली कोडाकोडी स्थिति ४ होय; तेटला सेंकडा वर्षो सुधी अबाधा होय; त्यारपछी प्रदेशथी अथवा विपाकथी कर्मनो अनुभव (भोगववू ) थाय ए प्रमाणे दरेक कर्मनी स्थितिमां जाणवू. CRESCESSEN ACCORA For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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