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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२५॥ तपणुं छे, तेमां औदारिक योग्य उत्कृष्ट वर्गणामां एकरूप (संख्या) उमेरवाथी अयोग्य वर्गणा जयन्य थाय छे. ए प्रमाणे एक एक आचा० 8. प्रदेश वधतां उत्कृष्ट अंतवाळी अनंती थाय छे. प्रश्न-एमां जघन्य उत्कृष्ट वर्गणानो शुं विशेष छे ? २५८॥ उत्तर-जघन्यथी असख्येय गुणी उत्कृष्टो छे, अने ते बहु प्रदेशपणाथी अने अति सूक्ष्म परिणामपणाथी औदारिकन अनंति वर्गणा पण ते अग्रहण योग्य छे, तेम अल्प प्रदेशपणाथी अने बादर परिणामपणाथी वैक्रिय (शरीर) ने पण अयोग्य छे, |ए प्रमाणे जेम जेम प्रदेशनो उपचय थाय; तेम तेम विश्रसा परिणामना वशथी वर्गणाओर्नु अतिशय सूक्ष्मपणुं जाणवू तेज उत्कृष्ट | उपर एकरूप नाखवाथी योग्य अयोग्य विगेरे वैक्रिय शरीर वर्गणाओर्नु जघन्य उत्कृष्टर्नु विशेष लक्षण जाणवू; तथा वैक्रिय-आहारक ए बन्नेना वचमा रहेली अयोग्य वर्गणाओर्नु जघन्य उत्कृष्ट विशेष असंख्येय गुणपणुं छे वळी पूर्वे कह्या प्रमाणे अयोग्य वर्गणा उपर एकरूपना प्रक्षेपथी जघन्य आहारक शरीर योग्य वर्गणाओ थाय छे. ते प्रदेश वृद्धिथी वधतां उत्कृष्ट अनंत सुधी थाय छे. प्रश्नः-जघन्य उत्कृष्टर्नु केटलुं अंतर छे ? उत्तरः-जघन्यथी उत्कृष्ट विशेष अधिक छे. प्रश्नः-विशेष केटलो छे ? उत्तरः-जघन्य वर्गणानोज अनंत भाग छे, तेनुं पण अनंत परमाणुपणुं होवाथी आहारक शरीर योग्य वर्गणाओनुं प्रदेश उ-& त्तरथी वधती वर्गणाओ, पण अनंतपणुं छे, ते उत्कृष्ट वर्गणामांज एकरूप उमेरवाथी जघन्य आहारक शरीरने अयोग्य वर्गणाओ थाय 2 PARGANSAUGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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