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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२४४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयोगिपणाथी भवसंततिनो क्षय तेनाथी मोक्ष छे, माटे ते वधां कल्याणोनुं मुळ विनय छे.. ( माटे विनय संपादन करवो. ) जेम विनय मोक्षनुं कारण छे, तेज प्रमाणे विषय (इन्द्रियोनो स्वाद ) तथा क्रोध, मान विगेरे कषायो संसारनुं मुळ छे. मुळ वर्णन कर्यु. हवे स्थानना पंदर प्रकारे निक्षेपा बतावे छे. णामंठवणादवि खित्तद्धा उढ उबरई बसही । संजम पग्गह जोहे अयल गणण संघणाभावे ॥ १७५ ॥ नामस्थापना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, विगेरे छे, ते कहे छे नामस्थापना सुगम छे. द्रव्यमां ज्ञ शरीर विगेरे छोडीने द्रव्यस्थानमां सचित अचित्त अने मिश्रद्रव्यनुं जे स्थान, (आश्रय ) छे ते लेबुं. क्षेत्रस्थानमां भरत विगेरे छे, अथवा ऊंचे नीचे अथवा तिरछा (त्रांसा) लोकमां जे क्षेत्र छे ते क्षेत्रस्थान छे अथवा जे, क्षेत्रमां स्थाननुं व्याख्यान थाय ते लेवुं. अद्धा (काळ) तेनुं स्थान वे प्रकारे. (१) काय स्थिति, (२) भवस्थिति छे, कार्यस्थिति, ते पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायुमां असंख्यात, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणीनो काळ छे, तथा वनस्पतिकायनो अनंतकाळ छे. इन्द्रिय विगेरे विकलेन्द्रियनीकाय स्थितिसंख्याता हजार वर्षनी छे. पंचेन्द्रिय, तिर्यच, तथा मनुष्यनी कार्यस्थिति सात आठ भव छे. पण ते बधानी भवस्थिति नीचे मुजब छे:-- पृथ्वीनी बावीस हजार, पाणीनी सात हजार, वायुनी त्रण हजार, वनस्पतिनी दश हजारवर्षनी उत्कृष्टि स्थिति छे. अग्निकायनी त्रण रात्रीदिवस छे. वे इन्द्रिय शंख विगेरेनी, बार वर्षनी छे, त्रण इन्द्रिय कीडी विगेरेनी स्थिति ओगणपचास दिवसनी छे, चार इन्द्रिय भ्रमरा विगेरेनी छ मासनी छे पांच इन्द्रिय तिर्यच, तथा मनुष्यनी त्रण पल्योपमनी छे, देव, तथा नारकीनी स्थिति भवसंबंधी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥२४४॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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